Telangana SCERT Solution Class VIII (8) Hindi Chapter 10 जब सिनेमा ने बोलना सीखा
जब सिनेमा ने बोलना सीखा
प्रश्न
1.) सिनेमा का संबंध हमारे भूत, भविष्य एवं वर्तमान से है, कैसे ?
सिनेमा में हमारा भूतकाल, भविष्य काल, वर्तमान काल भी दिखाया जाता है। सिनेमा हमारे वर्तमान से जुड़ा हुआ होता है। वैसे ही भूतकाल की बहुत सारी कहानियां, ऐतिहासिक कहानियां भी वहां दिखाई जाती है। ऐसे ही वहां पर भविष्य में घटने वाली घटनाओं को काल्पनिक रूप से दिखाया जाता है। इसीलिए सिनेमा का हमारे भूत भविष्य और वर्तमान से संबंध है।
2.) जब सिनेमा नहीं था तो लोग अपना मनोरंजन किस प्रकार करते होंगे?
जब सिनेमा नहीं था तो गांव-गांव में नाटक के प्रयोग होते थे। लोग वहां से अपना मनोरंजन कर लेते थे। घरों में स्त्रियां जब काम करती थी तो काम करते वक्त वह ओवी गाती थी।
3.) अपने आरंभिक दिनों में सिनेमा कैसे होते होंगे? उन्हें देखकर उस समय के लोग क्या सोचते होंगे?
आरामभक्षी मंदिर दिनों में सिनेमा में सिर्फ चित्र दिखाई देता था। कोई संवाद नहीं था, कोई संवाद सुनाई ही नहीं देता था। इन्ही फिल्मों से उस समय लोग अपना मनोरंजन कर लेते थे।
सुनिए- बोलिए
1.) अगर आप किसी मूक फिल्म के दर्शक होते तो आपके मन में क्या-क्या विचार उत्पन्न होते ? चर्चा कीजिए।
अगर हम किसी मुक का फिल्म के दर्शक होते तो हमारे मन में यही विचार आते की यह सब फिल्में कैसे बनाई जाती है? इनमें से आवाज क्यों नहीं आती? इसमें सिर्फ कलाकारों के चेहरे अभिव्यक्त होते हैं।
2.) फिल्में समाज का दर्पण हैं। इनमें समाज के भूत, भविष्य एवं वर्तमान के दर्शन होते हैं। एक दौर था जब फिल्मों में नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक समस्याओं का चित्रण होता था। उनमें मनोरंजन के लिए प्रयुक्त संगीत, साहित्य, अभिनय आदि कलाएँ श्रेष्ठ कोटि की होती थीं। “आजकल की फिल्मों में कलाओं की श्रेष्ठता कहीं खो गई है।” इसके पक्ष-विपक्ष में चर्चा कीजिए।
पहले की फ़िल्में और आज की फिल्मों में बहुत अंतर होता है। पहले की फिल्मों में सामाजिक प्रश्न दिखाए जाते थे। वह फिल्में अनाज रोटी ऐसे विषयों पर आधारित थी लेकिन आज के फिल्मों में सिर्फ अश्लीलता दिखाई जाती है।
पढ़िए
1.) पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अर्देशिर एम. ईरानी को प्रेरणा कहाँ से मिली ? उन्होंने आलम आरा फिल्म के लिए आधार कहाँ से लिया ?
आर्देशिर ए.) एम ईरानी को प्रेरणा एक हॉलीवुड के फ़िल्मों से मिली। हॉलीवुड की बोलती फिल्में देखकर आर्देशिर ईरानी को आलम आरा यह फिल्म बनाने का विचार आया।
2.) जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर कौन से वाक्य छापे गये ? उस फिल्म में कितने चेहरे थे?
वे सभी सजीव है, सांस ले रहे हैं, शत प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा जिंदा हो गए, उनको बोलते बातें करते देखो। देश की पहली सबक फिल्म आलम आरा के पोस्टर पर विज्ञापन की यह पंक्तियां लिखी हुई थी।
3.) डब फिल्में किसे कहते हैं? कभी-कभी डब फिल्मों में अभिनेता के मुँह खोलने और आवाज़ में अंतर आ जाता है। इसका कारण क्या हो सकता है?
डब की गई फिल्में इसका अर्थ है, अभिनेता सिर्फ अपना मुंह हिलता है। आवाज दूसरा ही कलाकार देता है। इसमें अभिनय करते समय और आवाज देने में कभी-कभी अंतर आ जाता है। तो कभी-कभी तकनीकी समस्याओं की वजह से इन बातों का तालमेल नहीं बैठता।
4.) जब पहली सवाक् फिल्म के निर्माता-निर्देशक अर्देशिर को सम्मानित किया गया तब
सम्मानकर्ताओं ने उनके लिए क्या कहा था?
सम्मान करता हूं ने निर्माता-निर्देशक आर्देशिर को सबक फिल्म उनके पिता ऐसा कहा।
अर्देशिर ने क्या कहा ?
निर्माता-निर्देशक आर्देशिर जी ने इस पर यह कहा कि मुझे इतना बड़ा खिताब देने की जरूरत नहीं मैंने तो देश के लिए अपने हिस्से का जरूरी योगदान दिया है।
इस प्रसंग में लेखक ने क्या टिप्पणी की?
लेखक ने इस प्रसंग पर निर्माता-निर्देशक आर्देशिर जी को विनम्र कहा है।
लिखिए
1.) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर चार-पांच वाक्यों में लिखिए।
1.) सिनेमा में पढ़े-लिखे अभिनेता-अभिनेत्रियों की आवश्यकता क्यों पड़ी होगी?
जब फिल्म सिनेमा ने बोलना नहीं सीखा था तब अभिनेता अभिनेत्री के हाव-भाव से काम चल जाता था। लेकिन जब पहली बार सिनेमाने बोलना सीख लिया तब सिनेमा में काम करने के लिए पढ़े लिखे अभिनेता अभिनेत्री उनकी जरूरत थी, क्योंकि अब संवाद भी बोलने थे सिर्फ अभिनय से काम नहीं चलने वाला था।
2.) किसी मूक सिनेमा में बिना आवाज़ के ठहाकेदार हँसी कैसी दिखेगी ? अभिनय करके अनुभव कीजिए। इस पर अपने विचार लिखिए।
अगर किसी मुंह को सिनेमा में बिना आवाज के ठेकेदार हंसी दिखानी है तो वह अभिनेता या अभिनेत्री अपना सीट जोर-जोर से हिलाएगा। हंसी दिखाने का हाव-भाव करेगा।
3.) अंग्रेज़ी सिनेमा में गाने नहीं के बराबर होते हैं। यदि हिंदी सिनेमा में भी गाने न हो तो कैसा लगेगा? अपने विचार लिखिए।
अंग्रेजी सिनेमा की तरह है भारतीय सिनेमे बनने लगे तो उस सिनेमा में एक उदासीनता छा जाएगी। उस फिल्म को देखने बहुत कम लोग उत्सुक होंगे, क्योंकि सभी लोगों को सिनेमा में सिर्फ अभिनय ही नहीं गाने भी देखने होते हैं। इस फिल्म में एक नया उत्साह, रोचकता आ जाती है।
4.) फिल्में भाषा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, कैसे? लिखिए।
फिल्में भाषा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है फिल्म की भाषा से उसे फिल्म के कई भाव प्रकट होते हैं। फिल्म में गानों के प्रयोग भी किए जाते हैं। जो बातें गाने से समझ में नहीं आती वह बातें भाषा से समझ आती हैं।
II.) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर आठ-दस वाक्यों में लिखिए।
1.) मूक सिनेमा में संवाददाता नहीं होते, उसमें दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है। पर जब सिनेमा बोलने लगा, उसमें परिवर्तन हुए। वे परिवर्तन इनके संबंध में क्या हो सकते हैं?
- अभिनेता
जब से सिनेमा बोलने लगा है तब से पढ़े-लिखे अभिनेताओं की जरूरत फिल्म में लगने लगी। उसके पहले अभिनेता या अभिनेत्री का सिर्फ अभिनय देखा जाता था।
- दर्शक
दर्शकों को फिल्म समझना यह बात आसान हो गई। क्योंकि उसके पहले फिल्म उनको तो सिर्फ उसके अभिनय से ही जा जा जा सकता था लेकिन आज हम फिल्मों को भाषा से समझ सकते हैं।
- तकनीक
जबसे सिनेमा ने बोलना शुरू किया तब से सिनेमा उनको नई तकनीक की आवश्यकता पड़ने लगी अभिनेता अभिनेत्रियों की आवाज दर्शकों तक सहज रिता पहुंच सके इसके लिए निर्देशको को नई तकनीक का इस्तेमाल करना पड़ा।
2.) फिल्में केवल मनोरंजन का साधन मात्र ही नहीं, वे हमसे बहुत कुछ कहना चाहती हैं। इनमें हमारे जीवन, साहित्य, संस्कृति, सभ्यता आदि की झलक दिखाई देती है। फिल्में सामाजिक परिवर्तन में आजकल महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। फिल्मों का समाज एवं संस्कृति पर प्रभाव के बारे में अपने विचार लिखिए।
फिल्म में केवल मनोरंजन का साधन नहीं है उसमें से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। हमारी संस्कृति, सभ्यता, आचार विचार यह सब का आईना फिल्म होता है। बहुत सारे लोग फिल्मों से आदर्श लेते हैं। बहुत कुछ उससे ही सीखते हैं उसमें जो दिखाया जाता है उस पर चर्चा करते हैं। इसीलिए जब फिल्में बनाते हैं तब हमें वह फिल्में सोच समझ कर बनानी चाहिए।
शब्द भंडार
1.) पाठ में आयी अंग्रेज़ी शब्दावली जैसे पोस्टरों, इंटरव्यू को हिन्दी ने बड़े प्रेम से स्वीकारा है। पाठ में आये ऐसे ही अन्य शब्दों को छाँटकर, उनके हिन्दी के समानार्थी शब्द जानिए और लिखिए।
फिल्मकार- सिनेमा का निर्माण करने वाले।
रिकॉर्ड- अभिलेख
स्टार- सितारे
स्टंटमैन-करतब दिखाने वाला
हाउसफुल -पूरा भरके
2.) रेखांकित शब्द का अर्थ जानें और वाक्य प्रयोग करें।
क.) फिल्म खुदा की शान में एक किरदार महात्मा गाँधी जैसा था।
किरदार – भूमिका निभाने वाले
मंगलयान फिल्में सभी ने अपने किरदार अच्छे निभाए।
ख.) निर्देशक अर्देशिर को भारतीय सवाक् फिल्मों के पिता का खिताब दिया गया।
खिताब- पुरस्कार
लता मंगेशकर जी को उनके गानों के लिए अनेक खिताब मिले हैं।
भाषा की बात
1.) ‘सवाक्’ शब्द ‘वाक्’ के पहले ‘स’ लगाने से बना है। ‘स’ उपसर्ग से कई शब्द बनते हैं। निम्नलिखित शब्दों के साथ ‘स’ का उपसर्ग के भाँति प्रयोग करके शब्द बनायें और शब्दार्थ में होनेवाले परिवर्तन को बताएँ।
हित, परिवार, विनय, चित्र, बल, सम्मान।
हित- सहित – जो आपके हित के बारेमे सोचे।
परिवार- सपरिवार- अपने परिवार सहित
विनय- सविनय- बड़ी विनम्रता के साथ।
चित्र- सचित्र- चित्र के साथ।
बल- सबल- ताकद से
सम्मान- इज्जत
2.) उपसर्ग और प्रत्यय दोनों ही शब्दांश होते हैं। वाक्य में इनका अकेला प्रयोग नहीं होता। इन दोनों में अंतर केवल इतना होता है कि उपसर्ग किसी भी शब्द में पहले लगता है और प्रत्यय बाद में। हिंदी के सामान्य उपसर्ग इस प्रकार हैं- अ / अन, नि, दु, क/कु, स/सु, अघ, बिन, औ आदि। पाठ में आये उपसर्ग और प्रत्यययुक्त शब्दों के कुछ उदाहरण नीचे दिये जा रहे हैं-
मूल शब्द उपसर्ग प्रत्यय शब्द
वाक् स – सवाक्
लोचन सु आ सुलोचना
फिल्म – कार फिल्मकार
कामयाब – ई कामयाबी
इस प्रकार के पंद्रह-पंद्रह उदाहरण खोजकर लिखिए और अपने सहपाठियों को दिखाइए।
मूल शब्द उपसर्ग प्रत्यय शब्द
ज्ञान वि इक वैज्ञानिक
न्यास स ई संन्यासी
रस स ता सरसता
मान अ ई अभिमानी
शिक्षित सु ता सुशिक्षितता
जैविक अ ता अजैविकता
नम्र वि ता विनम्रता
नाम ब ई बदनामी
भिन्न वि ता विभिन्नता
कार्य सह इता सहकारिता
तंत्र स्व ता स्वतंत्रता
गंधी सु त सुगंधित
प्रशंसा
आपने पढ़ा कि पहले फिल्म मूक होती थीं। इस आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि एक समय ऐसा भी रहा होगा जब इन्सान भी केवल मूक भाषा का प्रयोग करता रहा हो। अनुमान लगाइए कि यदि सवाक् भाषा नहीं होती तो हमें किस प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता ?
अगर उसी की तरह ही फिल्मों में मूक भाषा का प्रयोग होता तो वह भाषा समझने में आज भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता। अभी उनके अभी नए से तर्क लगाने पड़ते कि वह क्या बातें कर रहे।
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