Telangana SCERT Solution Class X (10) Hindi Chapter गुड़ियों का त्यौहार
गुड़ियों का त्यौहार
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर आठ 10 पंक्तियों में लिखिएl
1.)लेखक ने व्यंकोजी एंड संस कंपनी से कुछ गुड़ियों के नमूने भिजवाने के लिए क्यों लिखा होगा?
गुड़ियों का त्योहार यह कहानी श्री विजय राघव रेड्डी इन्होंने लिखी हैl यह कहानी संक्रांति त्योहार पर आधारित हैl इसमें लेखक एक बहुत बड़ी गुड़िया बेचने वाली कंपनी को लिखते हैं, कि उन्हें गुड़ियों के नमूने भेज देl वह उनका निरीक्षण करेंगे और एक पत्र कंपनी को लिखेगा जिसमें उन गुड़ियों का वर्णन होगाl इसके बाद उन गुड़ियों की बिक्री बढ़ जाएगी और कंपनी को मुनाफा होगाl लेखक यह सब इसलिए करते हैं क्योंकि संक्रांति मनाने के लिए उन्हें बहुत सारी गुड़ियों की आवश्यकता थी। उनको 10 गुड़िया खरीदने थी उनकी पुरानी गुड़िया खराब हो गई थी मैली हो गई थी और बच्चों की जीत के सामने उनकी एक न चलीl इसीलिए उन्होंने कंपनी को पत्र लिखा, कि उन्हें 10 गुड़िया भेज देl
2.)संक्रांति त्योहार में गुड़ियों का क्या महत्व है?
श्री विजय श्री विजय राघव रेड्डी इन्होंने यह कहानी लिखी है। हमारे देश में संक्रांति मनाई जाती है। अलग अलग प्रांत में यह अलग अलग तरह से मनाई जाती है। इस कहानी में आंध्र प्रदेश में यह त्यौहार कैसे मनाया जाता है यह बताया है।जब फसलें आती है। तब यह त्यौहार मनाया जाता है यह त्यौहार 3 दिन तक मनाया जाता है। बसंत का मौसम अपने-अपने साथ-साथ संक्रांति का त्योहार लेकर आता है। आंध्र प्रदेश में पहले दिन अपनी पुरानी वस्तुओं को जिन वस्तुओं का आप इस्तेमाल नहीं करती ऐसे वस्तुएं एकत्रित करते हैं और उन्हें जलाया जाता है। इसे भोगी भी कहा जाता है। दूसरे दिन पर संक्रांति में घर के आंगन में रंगोली बनाई जाती है। उसमें गन्ने के टुकड़े और चावल के आटे का इस्तेमाल करते हैं और तीसरे दिन अपना घर रंग बिरंगी गुड़ियों से सजाते हैं। उनकी पूजा करते हैं। इस दिन पतंग भी उड़ाई जाते हैं। इस प्रकार 3 दिन तक बड़ी धूमधाम से यह त्यौहार आंध्र प्रदेश में मनाया जाता है।
3.)वेंकों जी एंड संस कंपनी के मालिक का पत्र पढ़ने के पश्चात लेखक की क्या प्रतिक्रिया रही होगी? स्पष्ट कीजिएl
वेंकोजी एंड संस कंपनी के मालिक को लेखक ने पत्र लिखा था, कि उन्हें गुड़िया चाहिए। जिनका वह निरीक्षण करेंगे और कंपनी को एक पत्र लिखेंगे, जिसमें गुड़ियों का वर्णन होगा। इससे कंपनी की गुड़िया ज्यादा से ज्यादा बेची जाएंगी और कंपनी को मुनाफा होगा लेखक को संक्रांति का त्योहार मनाने के लिए गुड़ियों की जरूरत थी। बच्चों ने जीत की थी कि उन्हें नयी गुड़िया चाहिए। इसीलिए लेखक ने कंपनी को पत्र लिखा था, कि उनको कुछ गुड़िया चाहिए। लेकिन लेखक के मालिक ने इसके लिए मना कर दिया और लेखक को कहा कि आप दुकान में ही जाकर गुड़ियों का निरीक्षण करें। इसके बाद लेखक परेशान हो गए अब वह बच्चों की जिद्द कैसे पूरी करेंगे? संक्रांति का त्योहार कैसे मनाएंगे यह सोचकर वह परेशान हो गए?
4.)यह तेलुगु से अनूदित कहानी है अन्य भाषा की ऐसी कोई एक कहानी ढूंढ कर लिखिएl
मेरे पापा
मां को हम हमारी जिंदगी में बहुत महत्व देते हैं। मां होती है ऐसी है। लेकिन पिता हमारी नजर में हमें हमेशा बहुत आते रहते हैं हमें अनुशासन में रखने की कोशिश करते हैं। लेकिन उसके पीछे का प्यार हम समझ नहीं पाते
जब मैं छोटा था तब ऐसा लगता था,कि पापा हमेशा मुझे क्यों डाँटते रहते हैं। मैं क्या हमेशा ही गलत काम करता हूं? क्या कोई भी काम करने से पहले सौ सवाल पूछते थे। वही काम पूरा होने के बाद भी बहुत सारे प्रश्न पूछते थे। हमेशा अनुशासन से चलने की शक्ति करते थे। लेकिन आज बड़े होने के बाद यह पता चल रहा है कि पापा इसे क्यों करते थे।
मुझे साइकिल चलाने नहीं थी। साइकिल चलाने में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है। लेकिन पापा ने ठान लिया था, कि मुझे बहुत साईकिल सिखा कर ही रहेंगे। इसीलिए पहले उन्होंने पुरानी साइकिल ने पहले वह मुझे सुबह-सुबह उठाकर साईकिल चलाने के लिए ले जाते थे। मुझे सुबह उठना भी पसंद नहीं था और साइकल तू मुझे चलानी ही नहीं थी। इसीलिए मैं बहुत बहाने बनाता था। लेकिन पापा ने तो ठान लिया था, कि इसी साईकिल सिखा कर ही रहूंगा। इसीलिए पापा मेरी एक बात न मानते थे और मुझे साइकिल चलाने के लिए ले जाते थे। मुझे पापा पर बहुत गुस्सा आता था, क्योंकि साइकिल चलाते वक्त मैं बहुत बार गिरता था मुझे बहुत सारी चोट लगी थी। और पापा को जरा भी दया नहीं आती थी। घर जाकर वह मल हम तो लगा देते थे लेकिन मुझे लगता था कि पहले गिरा देते हैं और अब मलहम लगाते हैं। मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता था लेकिन पापा की जिसकी वजह से मैं साइकिल चलाना सीख गया। जब मैं आठवीं कक्षा में पहुंच गया तब पापा ने मुझे नहीं साइकिल खरीद कर दी तब भी मुझे पापा पर बहुत गुस्सा आ गया था। अरे, यह क्या मुसीबत है ऐसा मुझे लग रहा था। लेकिन आठवीं कक्षा में जाने के बाद मेरा दाखिला दूसरे स्कूल में पापा ने करवा दिया। वह स्कूल बड़ा दूर था। तब यही साईकिल मेरे काम आए सुबह उठकर स्कूल में जाने के लिए और स्कूल से वापस आने के लिए यही साइकिल काम आती थी। तब मुझे पता चला कि पापा ने यह सब क्यों किया था अब बड़े होकर लगता है कि पापा ने जो भी किया हमें हमारे अच्छे के लिए किया। हां थोड़ी सख्ती तो दिखाए बहुत सारे नियम बनाएं। हमारे कई बातें उन्होंने माने नहीं लेकिन यह जो भी किया हमारे भले के लिए किया। आज मैं इस मुकाम पर हूं तो मैं अपने पापा की वजह से ही हूं।उन्होंने जीने का सही रास्ता और मतलब सिखाया।
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