Telangana SCERT Solution Class X (10) Hindi Chapter 7 अन्वेषण
अन्वेषण
प्रश्न
1.) ईश्वर सर्वव्यापी है ऐसा क्यों कहा जाता है?
जगत में हर जगह ईश्वर है। सृष्टि के हर चराचर में ईश्वर है। हम ईश्वर को अलग-अलग नाम से बुलाते हैं। लेकिन ईश्वर एक ही है। इसीलिए ईश्वर सर्वव्यापी है ऐसा कहा जाता हैl
2.) सब की प्रेरणा ईश्वर से है। इस पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
हमारा जीवन ईश्वर से ही है। उसी की वजह से हम सारे काम कर पाते हैं। जितना हमें मिलता है उसमें से हम दूसरों को भी देते हैं। दूसरों का विचार करते हैं। सही गलत अच्छे बुरे की हमें समझ होती है। इसका कारण ईश्वर है। इसकी प्रेरणा भी ईश्वर ही है। ईश्वर के प्रति हमारी जो भावनाएं होती है उसी के कारण हम यह सब कर पाते हैं।
3.) समाज सेवा के संबंध में आप क्या कहना चाहेंगे?
हमारे आस पास कोई दुखी लोग हो या फिर ऐसे लोग जिन्हें हमारी जरूरत है तो हमें उन लोगों की मदद करनी चाहिए। ईश्वर हमसे यही उम्मीद करता है की हम दुसरों की मद्द करे उन्हें तकलीफ से बाहर निकलने में मद्द करे। अगर आप ऐसे लोगों की मदद ना कर सके तो हमारे पास संसाधन होने से भी उसका उपयोग हम नहीं कर रहे। ऐसे में ईश्वर हमसे कभी खुश नहीं होगा। वह हमारी मदद कभी नहीं करेगा।
प्रश्न
1.)कवि कुंजवन में किसे ढूंढता है?
ईश्वर तो दीन दुखियों की मदद करने में व्यस्त था उनके पास था लेकिन कभी ईश्वर को कुंजवन में ढूंढ रहे थे।
2.) ईश्वर दुखियों के द्वार पर क्यों रहता होगा?
जो लोग सुख में है अच्छे से अपना जीवन बिता रहे हैं उन पर तो ईश्वर की कृपा रही है। लेकिन जो लोग दुखी है उन्हें ईश्वर की जरूरत है। ईश्वर के साथ की जरूरत है। इसलिए ईश्वर दुखियों के द्वार पर रहता होगा।
3.) जग कि अनित्यता से आप क्या समझते हैं?
क्या दुनिया मे जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित हैl इसी तरह से ये दुनिया भी कभी ना कभी नष्ट होगी। इसीलिए हमे अच्छे कर्म करने चाहिये। दुसरोंकी मद्द करनी चाहिये। बडों की दुखियोंकी सेवा करना चाहिये।
4.) ईश्वर प्रकृति में कहां-कहां व्याप्त है ?
ईश्वर दुनिया मे हर जगह व्याप्त है। जैसे वह दुखी, गरीब लोगों मे दिखता हैं। वैसेही वह अच्छी सुंदर जगहों पर भी दिखता है। वह दुनिया के हर कण मे व्याप्त है।
5.) कवि इश्वर से किस प्रकार की प्रतिभा प्रदान करने को कहता है?
कवी ईश्वर से इस प्रकार की प्रतिभा चाहते है कि उनके जीवन में अगर कठिनाइयाँ आये तो उन्हे सहने का सामर्थ्य मिले। कवी ईश्वर को अपनी आँखों से देख सके उनको महसूस कर सके। कवि इश्वर से इस प्रकार की प्रतिभा प्रदान करने को कहता है।
6.) सुख दुःख में हमें कैसे रहना चाहीए?
ईश्वर जैसे हमे सुख की घडिया देता है वैसे दुख भी देता है। जैसे हम सुख में उसे याद करते है वैसे हे दुख में भी ईश्वर को याद करना चाहिये। हर परिस्थिती में हमे ईश्वर को याद करना चाहिये। उसे कभी नहीं भुलना चाहिये।
अ) प्रश्नों के उत्तर बताईए।
1.) लोग ईश्वर की खोज में जगह-जगह भटकते हैं। जबकि यह भी मान्यता है की ईश्वर कण-कण में व्याप्त है। इस समय मैं अपने विचार स्पष्ट कीजिए। मित्रों से चर्चा कीजिए।
इस दुनिया की कण कण में ईश्वर है। लेकीन हमें आराधना करने के लिए हमारा ध्यान ईश्वर पर केंद्रीत करने के लिए एक जगह चाहीए। जहां पर बैठ कर हम उनको को याद कर सकेंगे स्तुति कर सकेंगे।
2.) ईश्वर की प्राप्ति के लिए समाज सेवा भी एक मार्ग हे। आपके दृष्टी से समाज सेवा कैसी होनी चाहिए?
हम गरीबों के साथ खड़े रह कर उनके हक्क लिए लड़ सकते हैं। उन्हीं मदद कर सकते हैं यह भी एक ईश्वरीय कार्य है। भुखे लोगोंको खाना खिलाना। गरीबों को उन की जरुरत के अनुसार मद्द करना। उन्हें काम देना, रहने की व्यवस्था करना समाज सेवा ऐसी होनी चाहिए।
3.)दिन दुखियों की सहायता करना और दान करना पुण्य का काम माना जाता है। इस मान्यता पर अपने अपने विचार प्रकट करते हुए चर्चा कीजिए।
ईश्वर सच्चे लोग के साथ हमेशा खडे रहते है। गरीबो की मदद करने से सेवा करनें से ईश्वर हमेशा खुश होते है वह हमेशा इस वजह से प्रसन्न रहते हैं। गरीबों की मदद करना ईश्वर का कार्य है इससे हमें पुण्य मिलता है।
आ) पाठ पढ़िए अभ्यास कार्य कीजिए।
1.) कवि भगवान को कहां-कहां ढूंढता है?
कभी भगवान को कुंज में वन में संगित में भजन में बाजा बजाकर उसमें धन में ढुंढंने की कोशिश करता हे। लेकिन कवि को भगवान वहां पर नहीं मिलता। भगवान तो दीन गरीब लोगों के द्वार पर खड़ा था।
2.) पाठ के आधार पर बताइए कि भगवान किस किस रुप में मिल सकते हैं?
भगवान गरीब लोगों के द्वार पर खड़े रहते हैं। जो लोग संकट में होते है उनके आंसू में भगवान रहते हैं। परेशान लोग जो होते हैं उनकी मदद करने से भगवान की कृपा होती है। सजिव निर्जीव वस्तु में भगवान होते हैं। भगवान लोगों की सेवा में होते हैं।
3.) कवि भगवान से क्या प्रार्थना करता है?
कभी भगवान से प्रार्थना करते हैं कि मुझे सुख और दुख दोनों एक ही तरह से देना। सुख में मैं तुझे याद करना चाहता हूं। तो दुख में भी इतना साहस देना कि मैं उस संकट को सहन कर सकु। इन सब में मैं तुमको कभी ना भूल पाउ। हर परिस्थिति का सामना मे करू इतना साहस मुझ में भर देना।
इ) निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
1.) मेरे लिए खड़ा था, दुखीयों के द्वार पर तू।
मैंने तो भी कहां-कहां नहीं ढूंढा? कुंज में वन में सुख में संगीत में धन में लेकिन मुझे भगवान दुखियों के द्वार पर मिला। कवि को लगा उन कि उनकी मदद करनी चाहिए ताकि ईश्वरीय कृपा उनका आशीर्वाद इन्हीं भी प्राप्त हो जाए। कवि को ईश्वर दुखीओं के द्वार पर मिला।
2.) बनकर किसी के आंसू, मेरे लिए बाहां तू।
ईश्वर को लगता है कि हम किसी जरुरतमंद की मदद करें। हम ईश्वर को बहुत जगह ढुंढते हैं। वैसे कभी भी ईश्वर को बहुत जगह ढूंढ रहा था। ईश्वर को लगता है हम जरुरत लोगों के आँसू पोछे। ईश्वर गरीब लोगों के आँसु बनकर उनकी आंखों से बह रहा था।
3.) बेबस गिरे हुओं के तू बीच में खडा था।
कवि ने भनवान को सब जगह ढुंढा लेकीन भगवान वहा पर नहीं थे। भगवान दीन दुखियों के गरीब लोगों के बीच में खड़े थे। उनके आँसु पोंछ रहे थे। उनकी मदद कर रहे थे।
ई)गद्यांश पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
1.) राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित ब्रह्म समाज में ईश्वर की कैसे संकल्पना की जाती है?
राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित ब्रह्म समाज में ईश्वर की कैसे संकल्पना निराकार रुप में कि जाती है।
2.) उपासना के समय या उसके आगे पिछे किसी भी धर्म के विरोध में कुछ कहने का आदेश क्यों नही था?
सभी धर्म में हमें मानवता दयावान शिल्पा उधर का यही बोले सिखाए जाते हैं हम उपासना मन को शांत रखने के लिए करते हैं अगर किसी भी चीज का हम विरोध फिरते किसी भी धर्म का हम विरोध करते हैं तो हमारे मन में एक नकारात्मकता निर्माण होती है इसीलिए उपासना के समय या उसके आगे पीछे किसी भी धर्म के विरोध में कुछ कहने का आदेश नहीं था।
3.) गद्यांश में आई भाववाचक संज्ञाए पहचानकर लिखिए।
सच्चरित्रता, दयावान, दानशिलता, उदारता, पवित्रता
सच्चरित्रता – चरित्र
दयावान- दया
दानशिलता- दानशील
उदारता- उदार
पवित्रता- पवित्र
4.) ब्रम्हा समाज किस निति का घोर विरोधी था।
ब्रह्म समाज में वैराग्य, कठिन तपस्या, अकर्मण्यता आदि के लिए स्थान न था और यह समाज ऐसी बातों का घोर विरोधी था। जो मनुष्य मात्र को संसार से भी विरक्त बनाकर मूर्ख बना देती है।
5.) इस गद्यांश के लिए उचित शीर्षक दीजिए।
राजा राममोहन राय
2.) नीचे दिए गए चित्र को देखकर आपके मन में क्या विचार उत्पन्न हो रहे हैं अपने शब्दों में लिखिएl
दिए गए चित्र में यह दिखाया गया है कि, हम सब मानव एक है। हम अलग अलग धर्मों के अलग-अलग जाति के हैं, लेकिन फिर भी हममें एकता है।
अभिव्यक्ति सृजनात्मकता
अ) इन प्रश्नों के उत्तर पाच छह पंक्तियों में लिखिए
1.)कवि ईश्वर को कुंज और वन में क्यों ढूंढता है?
कवि को ईश्वर को ढूंढना था। उन्हें लगता था कि खोजने पर ईश्वर मिल जाएंगे। कवि को ईश्वरर का प्रेम प्राप्त करना था। इसलिए कवि ने भगवान को बहुत जगह ढूंढा। उन्हें लगता था की कुंज में और वन में ईश्वर मिल जाएंगे। पर कवि को ईश्वर कहीं नहीं मिले। फिर समझ में आया कि ईश्वर गरीब दीन लोगों की सेवा करने में लगे है।
2.) अनेक अवसर मिलने पर भी कवि क्यों लाभ नहीं उठा सका?
अनेक अवसर मिलने पर भी कवि लाभ नहीं उठा सका, क्योंकि कवि ईश्वर को कुंज में, वन में, स्वर्ग में, भजन में सभी जगह ढूंढता रहा। लेकिन उन्हें कहीं पर भी भगवान नहीं मिले। आखिर में कवि को समझ में आया कि भगवान, ईश्वर यह तो जरुरत लोगों के पास है। उनके द्वार पर खड़े हैं। उनके आँसू पोंछ रहे हैं। ईश्वर को बाहर कहीं भी ढुँढने की जरूरत नहीं है। दुखीओं की जरूरत मंद लोगों की मदद करके हम इश्वर का आशीर्वाद ईश्वर को पा सकते हैं।
3.) किरण सुमन पवन और आकाश में ईश्वर के किन रूपों का दर्शन किया जा सकता है?
कवि बताते हैं, यह जो सूर्य की किरणें है वह हमें जीवन प्रदान करती है। हमें प्रकाश देती है। सुमन मतलब फूल यह भी इश्वर का ही एक रुप है। ईश्वर की तरह सुंदर है। पवन हम सबको जीने के लिए प्राण वायु देता है, मतलब पवन प्राण है। गगन आकाश इनका विस्तार बहुत बड़ा है। अनंत है। ये भी ईश्वर है।
आ) इन प्रश्नों के उत्तर दस से बारह पंक्तियों में लिखिए।
1.) समाज में फैले बाह्याडंबरो के विरोध में कवि क्या संदेश देता है?
समाज में फैले बाह्याडंबरो के बारे में कवि कहते हैं कि ईश्वर बाहर नहीं मिलता बाह्य रूपों में नहीं मिलता। कवि ने इश्वर की खोज बहुत जगह की। कुंज में, भजन मे, वन में, स्वर्ग में, हर जगह भगवान को ढुँढा लेकिन कवि को भगवान कहीं नहीं मेिले। कवि को इश्वर का दर्शन हुआ लेकिन वह गरीब के द्वार पर, जरुरतमंद के लोगों की आसुओं में। भगवान का दर्शन कवि को पता चला कि भगवान कुंज में नहीं है, वह तो दुखीओं कि जरुरतमंद लोगों की सेवा करने में है। भगवान गरीब लोगों के द्वार पर खडा हे।
2.) हम कैसे पता लगा पाते हैं कि हमारा जीवन सही मार्ग पर अग्रसर है?
ईश्वर कहते हैं कि मुझे कहीं भी मत ढूंढो। कवि इश्वर को जगह जगह ढूंढता है। वन में, भजन में, कुंज में लेकिन कवि को ईश्वर नहीं मिलते है। इश्वर मिलते हैं गरीबों के द्वार पर। अगर हमारे पास अतिरिक्त चीज़े हे ऐसे चीज़े जिनसे हम दूसरों की मदद कर सके तो हमें वह चिजें गरिबों को देनी चाहिए या जिन्हें जरूरत है जैसे लोगों की मदद करनी चाहिए। दुखी लोगों के आंसू पोछने चाहिए। यहां पर हमें भगवान मिलते हैं अगर यह सब हम करते हैं तो हमारा जीवन सही मार पर अग्रसर है ऐसा भगवान कहते हैं।
3.) दुख और विपत्ति में संयम से रहने के लिए कवि क्या प्रार्थना करता है?
दुख और विपत्ति के समय संयम से रहने के लिए कवि भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हमें उन दुखों को सहने की ताकत देना। साहस देना यह दुख की घड़ी जो है वह तुम्हारी कृपा से अवश्य बदल जाएगी। लेकिन तब तक यह सब सहने की शक्ति मुझे देना। जैसे हम सुख में ईश्वर को नहीं भूलते वैसे ही दुख में भी हमें ईश्वर को नहीं भूलना चाहिए। सिर्फ उनसे यह प्रार्थना करनी चाहिए के कठिन परिस्थितियों का दुखों का मैं अच्छी तरह से सामना कर सकूं उसके काबिल मुझे बना देना।
इ) दुख में विपत्ति में संयम से रहने के लिए प्रेरित करती एक लघु कहानी की रचना कीजिए।
एक बार एक गांव में एक ब्राहमण कहां अगले 7 वर्ष तक इस गांव में अकाल पड़ जाएगा बारिश नहीं होगी। सब लोग डर गए और गांव छोड़ कर जाने लगे। लेकिन एक किसान अपना हल लेकर खेत में गया और खेत जोतने लगा। ऐसा उसने 2 साल तक किया। जब बारिश का मौसम आता तब यह किसान अपने खेत में जाता, हल चलाता। ऐसे एक बार वह हल चला रहा था और वह ब्राम्हण जिस ने बताया था कि इस गांव में बारिश नहीं होगी अकाल पड़ जाएगा वह वहां से गुजर रहा था। उस ब्राह्मण ने देखते ही किसान से पूछा कि यह तो 7 वर्ष तक बारिश नहीं होगी तो तुम अपना समय क्यों बर्बाद कर रहे हो? तब किसान ने कहा बारिश होगी या नहीं होगी यह मेरे हाथ में नहीं है। मैं मेरा काम कर रहा हूं। मेरा काम है खेत जोतना, बारिश करना नहीं। अगर भगवान ने चाहा तो बारिश हो जाएगी और तब मैं खेत जोतना खेती करना ही भूल गया तो। इसीलिए मैं मेरा काम कर रहा हूं। कई दिन बित गए और उसी साल वहा पर बारिश हो गई और उस किसान ने जो मेहनत की थी उसका फल उसको अच्छी तरह से मिल गया।
ई) मानवता दया और प्रेम मानवीय सृष्टि के अनमोल रत्न है। अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
मानवता दया और प्रेम यह अनमोल रतन है। यह रत्न हमें आत्मसात करने चाहिए। तो हमने सकारात्मक आ जाती है। मानव को हर किसी की मदद करनी चाहिए। जरूरतमंद लोगों के आंसू पोछने चाहिए। जब हम ऐसा करते हैं तो हम पर ईश्वर का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है। अगर हम दूसरों की मदद कर सके दूसरों का दुख महसूस कर सके तो हमें दूसरों की मदद भी करनी चाहिए। यही बात हमें सबसे अलग बनाती है। ईश्वर गरीबों लोगों में जरुरतमंद लोगों में ही हमेशा दिखाई देंगे वह हमारे सामने नहीं आएंगे। इन लोगों की मदद करने से ही ईश्वर भी आनंदीत हो जाएंगे।
भाषा की बात
अ)सूचना पढ़िए और उसके अनुसार कीजिए।
1.) दीन, विरक्त, बेबस, वतन (पर्याय शब्द लिखिए)
दीन- गरिब
विरक्त- वैरागी
बेबस- मजबुर
वतन- देश
2.)अनित्यता, मान, समर्थ ( विलोम शब्द लिखिए।)
अनित्यता* नित्यता
मान* अपमान
समर्थ* असमर्थ
3.) आँसु, चमन, दुख, कथन, चरण (वचन बदलकर वाक्य में प्रयोग कीजिए।)
आँसु- आँसुओ
तुम किसी के लिए भी अपने आसुओं को मत बहने दो।
चमन- चमन
हमारा चमन बहुत प्यारा है।
दुख- दुखों
तूम अपने दुखों को भुला दो।
कथन- कथनों
वह अपनी कथनों पर अड़ी रही।
चरण- चरणों
मां आप आते चरणों को हमेशा छुने चाहिए।
4.)ईमान, यश, धीर (उचित उपसर्ग जोडिए।)
ईमान- बेईमान
यश- अपयश
धीर- अधीर
आ)सूचना पढ़िए और उसके अनुसार अभ्यास कीजिए
1.) दीनबंधु अनित्यता भलामानस (समास पहुचानकर विग्रह कीजिए)
दीनबंधु- दीन के बंधु – तत्पुरुष समास
अनित्यता- जो अनित्य है- द्वंद्व
भलामानस- भला है जो मानस- कर्मधारय समास
2.) नि:+मल =निर्मल विसर्ग संधि है। इस संधि के 3 उदाहरण लिखिए।
1.)नि: +चय-=निश्चय
2.) नि: +संदेह= निस्सदेह
3.) नि:+ फल = निष्फल
इ) समान उच्चारण वाले शब्द उन शब्दों को कहते हैं जिनका उच्चारण तो प्रायः समान होता है परंतु अर्थ में भिन्नता पाई जाती है अर्थात उच्चारण में नाम मात्र का अंतर होने पर भी अर्थ में स्पष्ट अंतर होता है। ऐसे शब्दों को संबोधित शब्द कहते हैं। ऐसे ही पांच पांच शब्द पाठित पाठो में से ढूंढ कर लिखिए।जैसे
1.) आगम- आगमन.) 2.) कोष-भण्डार
अगम – दुर्गम.) कोश-शब्दकोश
1.) दीन-दिन
2.) धन – धुन
3.) दान – प्रदान
4.) भाव- भव
5.) मान-मन
ई) उत्पत्ति की दृष्टि से निम्न शब्दों के ऐसे शब्द है पहचानिए
1.) वतन -अरबी
2.) चमन -अरबी
3.) ईमान -अरबी
4.)इस्तेमाल -अरबी
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