Karnataka 1st PUC Hindi Prose Chapter 9 राष्ट्र का स्वरूप Questions and Answers Solution, Notes by Expert Teacher. Karnataka Class 11 Hindi Solution Chapter 9.
There are 3 Parts in Karnataka Class 11 Textbook. Here You will find Prose Chapter 9 Rashtra ka swaroop.
Karnataka 1st PUC Hindi Prose Chapter 9 – राष्ट्र का स्वरूप Solution
- State – Karnataka.
- Class – 1st PUC / Class 11
- Subject – Hindi.
- Topic – Solution / Notes.
- Chapter – 9
- Chapter Name – राष्ट्र का स्वरूप.
1) एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:
(१) किनके सम्मिलन से राष्ट्र का स्वरूप बनता है ?
भूमि पर बसने वाला जन और जन की संस्कृति मतलब भूमिजन और संस्कृति इन तीनों के सम्मिलन से राष्ट्र का स्वरूप बनता है।
२)किसकी कोख में अमूल्य निधियाँ भरी हैं?
धरती माता के कोख में अमूल्य निधियाँ भरी हैं।
३) सच्चे अर्थों में पृथ्वी का पुत्र कौन है ?
सच्चे अर्थों में पृथ्वी का पुत्र जन है।
(४)पुत्र का स्वाभाविक कर्तव्य क्या है ?
माता के प्रति अनुराग और सेवाभाव पुत्र का स्वाभाविक कर्तव्य है।
५)माता अपने सब पुत्रों को किस भाव से चाहती है?
माता अपने सभी पुत्रों को समान भाव से चाहती है।
६) राष्ट्र का तीसरा अंग कौन-सा है ?
राष्ट्र का तीसरा अंग जन की संस्कृति है।
८) राष्ट्र की वृद्धि किसके द्वारा संभव है?
राष्ट्र की वृद्धि संस्कृति के विकास और अभ्युदय के द्वारा संभव है।
७)राष्ट्र का सुखदायी रूप क्या है?
समन्वय युक्त जीवन ही राष्ट्र का सुखदायी रूप है।
९) संस्कृति का अमित भंडार किसमें भरा हुआ है ?
गाँवों और जंगलों में स्वच्छंद जन्म लेनेवाले लोकगीतों में, तारों के नीचे विकसित लोक कथाओं में संस्कृति का अमित भंडार भरा हुआ है।
१०)’राष्ट्र का स्वरूप’ पाठ के लेखक कौन हैं?
श्री वासुदेवशरण अग्रवाल ‘राष्ट्र का स्वरूप’ इस पाठ के लेखक हैं।
II)निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
१) राष्ट्र को निर्मित करनेवाले तत्वों का वर्णन कीजिए ।
भूमि, भूमि पर बसने वाले लोग और इन लोगों की संस्कृति इन सब से राष्ट्र को निर्मिती होती हैं। अगर हमे हमारी राष्ट्रीयता को बलवान करना है तो हमे हमारे भूमी के प्रति जागरूक होना जरूरी है। जो भी लोग इस धरती पर रहते है वह इस धरती का दूर अंग है। पृथ्वी सभी जन की माता है। और तीसरा अंग है जन की संस्कृती। जब संस्कृति का विकास होता हैं और अभ्युदय के द्वारा ही राष्ट्र की वृद्धि हो सकती है।
२) धरती ‘वसुंधरा’ क्यों कहलाती है?
धरती मां के कोख में जो अमूल्य निधिया भरी है उस वजह से धरती वसुंधरा कहलाती हैं। लाखों करोड़ों वर्षों से अनेक प्रकार की धातुओं को पृथ्वी के गर्भ में पोषण मिला है। दिन रात जो नदिया बहती है उनकी वजह से अगणित प्रकार की मिट्टी तैयार हुई है और इससे पृथ्वी का देह सजा है। पृथ्वी की गोद में जन्म लेनेवाले जड़-पत्थर कुशल शिल्पियों से संवारे जाने पर अत्यन्त सौन्दर्य के प्रतीक बन जाते हैं। नाना भाँति के अनगढ़ नग विन्ध्य की नदियों के प्रवाह में सूर्य की धूप से चिलकते रहते हैं, उनको जब चतुर कारीगर पहलदार कटाव पर लाते हैं तब उनके प्रत्येक घाट से नयी शोभा और सुन्दरता फूट पड़ती है. वे अनमोल हो जाते हैं।
३) राष्ट्र निर्माण में जन का क्या योगदान होता है?
मातृभूमि पर निवास करनेवाले मनुष्य राष्ट्र का दूसरा अंग है। पृथ्वी और मनुष्य को वजह से राष्ट्र की कल्पना हम कर सकते है। नही तो इस पृथ्वी की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। जब पृथ्वी और जन दोनों का सम्मिलन होता है तो ही राष्ट्र का स्वरूप संपादित होता है। जन के कारण ही पृथ्वी को मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है।
४) लेखक ने संस्कृति को जीवन-विटप का पुष्प क्यों कहा है?
राष्ट्र निर्माण के अंकुर उत्पन्न होने के लिए जनक के हृदय में राष्ट्रीयता की कुंजी होनी जरूरी है। जो पृथ्वी के साथ माता और पुत्र के संबंध को स्वीकार करता है उसे ही पृथ्वी के वरदान प्राप्त होते हैं। माता के प्रति अनुराग और सेवा भाव पुत्र का स्वाभाविक कर्तव्य है। वह एक निष्कारण धर्म है। स्वार्थ के लिए पुत्र का माता के प्रति प्रेम पुत्र के अध: पतन को सूचित करता है। जो जन मातृभूमि के साथ अपना संबंध जोड़ना चाहता है उसे अपने कर्तव्यों के प्रति पहले ध्यान देना चाहिए। भूमि और जान यह एक दृढ़ बंधन है।
५) समन्वययुक्त जीवन के संबंध में वासुदेवशरण अग्रवाल के विचार प्रकट कीजिए।
माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती है। इसी प्रकार पृथ्वी पर जो जन्म बसते हैं वह सभी बराबर है। उन में उच्च और नीचे का भाव नहीं है। जो मातृभूमि के उदय के साथ जुड़ा हुआ है वह समान अधिकार का भाग है। पृथ्वी पर निवास करने वाले जनों का विस्तार अनंत है-नगर और जनपद पूर्व और गांव जंगल और पर्वत नाना प्रकार के जनों से भरे हुए हैं। मातृभूमि के साथ जन का जो संबंध है उसमें कोई भेदभाव उत्पन्न नहीं हो सकता। पृथ्वी के विशाल प्रांगण में सब जातियों के लिए समान क्षेत्र है। सबको उन्नति करने का एक जैसा अधिकार है।
ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:
१ ) भूमि माता है, मैं उसका पुत्र हूँ ।
प्रसंग. यह गद्यांश साहित्य वैभव इस पाठ्य पुस्तक के राष्ट्र का स्वरूप इस पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक वासुदेवशरण अग्रवाल है।
संदर्भ. राष्ट्र की प्रगति तब तक नहीं हो सकती जब तक सभी लोगों के मन में भूमि के प्रति प्रेम आदर और सेवा भाव नहीं रहता।
स्पष्टिकरण. मनुष्य को जन्म देने वाली मां होती है लेकिन बाद में उसकी उसका भरण पोषण जो करती है वह धरती मां होती है। अगर पृथ्वी ना हो तो हमें अन्य नहीं मिल सकता जीवन नहीं मिल सकता। राष्ट्र का स्वरूप तभी संपादित होता है जब पृथ्वी और जल इन दोनों का सम्मिलन होता है।
२) यह प्रणाम भाव ही भूमि और जन का दृढ़ बंधन है ।
प्रसंग. यह गद्यांश साहित्य वैभव इस पाठ्य पुस्तक के राष्ट्र का स्वरूप इस पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक वासुदेवशरण अग्रवाल है।
संदर्भ. जब सभी जन का हृदय भूमि के साथ माता और पुत्र के संबंध को पहचानता है इस समय आनंद और श्रद्धा से भरा हुआ उसका परिणाम भाव मातृभूमि के लिए इस प्रकार प्रकट होता है।
स्पष्टिकरण. जब भूमि हमारी माता है और हम उसके पुत्र है यह भाव सशक्त रूप में जाता है तब राष्ट्र के निर्माण के स्वर वायुमंडल में भरने लगते हैं। यह भाव जब हमारे हृदय में पनपता है तभी मनुष्य पृथ्वी के साथ अपने सच्चे संबंधों को प्राप्त करते हैं। जहां यह भाव नहीं है वहां जन और भूमि का संबंध और चेतन और जड़ बना रहता है।
३) जन का प्रवाह अनंत होता है ।
प्रसंग. यह गद्यांश साहित्य वैभव इस पाठ्य पुस्तक के राष्ट्र का स्वरूप इस पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक वासुदेवशरण अग्रवाल है।
संदर्भ. अगर हम भूमि और जाना को संस्कृत से अलग कर दे तो राष्ट्र का लोग हो सकता है।
स्पष्टिकरण. भूमि के साथ राष्ट्रीय जन ने तादात्म्य स्थापित करने के लिए हजारों वर्ष लगाए हैं। इसीलिए इसका प्रवाह अनंत है। जब तक सूरज की किरणें है, वह संसार को अमृत से भरता रहेगा।
४) संस्कृति ही जन का मस्तिष्क है ।
प्रसंग. यह गद्यांश साहित्य वैभव इस पाठ्य पुस्तक के राष्ट्र का स्वरूप इस पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक वासुदेवशरण अग्रवाल है।
संदर्भ. संस्कृति लोगों को एक दूसरे के साथ जोड़ती है। इसीलिए संस्कृति जन का मस्तिष्क है।
स्पष्टिकरण. संस्कृत के विकास और अभ्युदय के द्वारा ही राष्ट्र की वृद्धि संभव है। अगर हमारे पास संस्कृति ना हो तो जनक की कल्पना भी हम नहीं कर सकते हैं। संस्कृत ही जन का मस्तिष्क है।
५)उन सबका मूल आधार पारस्परिक सहिष्णुता और समन्वय पर निर्भर है ।
प्रसंग. यह गद्यांश साहित्य वैभव इस पाठ्य पुस्तक के राष्ट्र का स्वरूप इस पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक वासुदेवशरण अग्रवाल है।
संदर्भ. जिस प्रकार जल के अनेक प्रवाह मिलकर समुद्र बनता है उसी प्रकार विविध राष्ट्रीय संस्कृत मिलकर समन्वय प्राप्त करती है।
स्पष्टिकरण. जीवन के विकास की युक्ति ही संस्कृति के रूप में प्रकट होती है। प्रत्येक जाति अपनी अपनी विशेषताओं के साथ इस युक्ति को निश्चित करती है और उससे प्रेरित संस्कृति का विकास करती है। इस दृष्टि से प्रत्येक जन की अपनी-अपनी भावना के अनुसार पृथक-पृथक संस्कृतियाँ राष्ट्र में विकसित होती हैं, परन्तु उन सबका मूल आधार पारस्परिक सहिष्णुता और समन्वय पर निर्भर है।
IV) निम्नलिखित वाक्य सूचनानुसार बदलिए:
१.) हमारे ज्ञान के कपाट खुलते हैं। (भविष्यत्काल में बदलिए)
हमारे ज्ञान के कपाट खुलेंगे।
२.) माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती थी । (वर्तमान काल में बदलिए)
माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती है।
३.) मनुष्य सभ्यता का निर्माण करेगा। (भूतकाल में बदलिए)
मनुष्यने सभ्यता का निर्माण किया था।
V) कोष्ठक में दिए गए कारक चिन्हों से रिक्त स्थान भरिए:
(पर, का, के, में)
१) जन का प्रवाह अनंत होता है ।
२) जीवन नदी की प्रवाह की तरह है ।
३)पृथ्वी के गर्भ में अमूल्य निधियाँ हैं ।
४) भूमि पर जन निवास करते हैं।
VI) समानार्थक शब्द लिखिए:
अंबर, धरती, पेड़, नारी, सूर्य ।
अंबर – आकाश, आसमान
धरती – भूमि, जनानी
पेड़ – वृक्ष, पौधे
नारी – स्त्री, महिला
सूर्य – सूरज, भास्कर
VII) विलोम शब्द लिखिए:
प्रसन्न, उत्साह, अमृत, स्वाभाविक, जन्म, ज्ञान ।
प्रसन्न – दुख
उत्साह – अनुत्साही
अमृत – विष
स्वाभाविक – अस्वाभाविक
जन्म – मृत्यु
ज्ञान – अज्ञान