स्वामी विवेकानंद | Swami Vivekananda in Hindi | Hindi Essay | Swami Vivekananda Essay in hindi.
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन 1863 कोलकाता में एक कुलीन कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके दादाजी का नाम दुर्गा चरण दत्ता था। और पिताजी का नाम विश्वनाथ दत्ता था।उनके बचपन का घर का नाम वीरेश्वर रखा गया। किंतु उनका औपचारिक नाम नरेंद्र नाथ दत्ता था । उनके पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाई कोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। उनके दादाजी संस्कृत और फारसी के विद्वान थे। उन्होंने अपने परिवार को 25 वर्ष की आयु में छोड़ दिया और एक साधु बन गए। उनकी माता भुनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थी।
नरेंद्र नाथ दत्ता का जन्म 12 जनवरी 2863 को कोलकाता में हुआ था। उन्होंने लोगों को बताया कि पवित्रता , धैर्य और दृढ़ता सभी बाधाओं को दूर कर सकती है। उन्होंने साहस रखने और काम करने का सुझाव दिया। स्वामी विवेकानंद के अनुसार” स्वयंविश्वास और ईश्वर में विश्वास “यही महानता का रहस्य है।
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन और वेदांत सोसाइटी की नींव रखी। 1893 में अमेरिका के शिकागो मैं हुए विश्व धार्मिक सम्मेलन में उन्होंने भारत और हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व किया था।
स्वामी विवेकानंद तीन कारणों से प्रसिद्ध है l पहला वे श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे । दुसरा उन्होंने शिकागो में जो भाषण दिया था जिसके चलते हुए लोकप्रिय हुए और तीसरा वे युवाओं के सन्यासी है। सबसे ज्यादा प्रसिद्धि उन्होंने शिकागो में दिए अपने भाषण से मिली।
स्वामी विवेकानंद प्रेम एवं मानवता का संदेश दिया करते थे। वे वेदांत दर्शन के समर्थक थे l उन्होंने अपने देश की अज्ञानता एवं गरीबी को दूर करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता को समझा और अज्ञानता को मिटाया। उनके अनुसार शिक्षा मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है। वे कहते हैं “आदर्श समाज वह होगा जो आध्यात्मिक अख
Essay on Swami Vivekananda in Hindi (by Another Teacher)
स्वामी विवेकानंद वेदांत के आध्यात्मिक ज्ञान के एक विख्यात गुरु थे। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 मे कलकाता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद का जन्म बंगाली परिवार में हुआ था।स्वामी विवेकानंद का मूल नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। स्वामी विवेकानंद की माता का नाम भुनेश्वरी देवी था। इनके पिता का नाम श्री विश्वनाथ दत्त था वह हाईकोर्ट के वकील थे। स्वामी विवेकानंद बचपन से ही बुद्धिमान थे। पिता की मृत्यु के बाद घर का भार स्वामी विवेकानंद पर आ पड़ा। बचपन से स्वामी विवेकानंद अतिथि देवो भव यह मानते थे। स्वय भूखे रहकर अतिथि को भोजन करते।
।स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन पर युवा दिवस मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद एक देशभक्त सन्यासी थे। अध्यात्मा में उनका विशेष ज्ञान था। रामकृष्ण परमहंस को स्वामी विवेकानंद अपने आध्यात्मिक गुरु मानते थे। रामकृष्ण परमहंस के स्मृति में स्वामी विवेकानंद में बेलूर मठ की स्थापना की । रामकृष्ण परमहंस के मृत्यु के बाद स्वामी विवेकानंद में भारतीय उपमहाद्वीप में यात्रा की। उस समय के वर्तमान स्थिति का निरीक्षण किया। अमेरिका, यूरोप तथा इंग्लैंड जैसे देशों में भारतीय वेदांत का विस्तार किया। स्वामी विवेकानंद ने विदेशों में भारतीय हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया।”उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए” यह स्वामी विवेकानंद द्वारा दिया गया उद्देश्य है ।
राजा अजीतसिंह खेत्री इन्होंने स्वामी को विवेकानंद यह नाम दिया। स्वामी विवेकानंद में भारत भर में भ्रमण किया। आखिर में वह कन्याकुमारी के तक पहुंच गये। अद्वैत वेदांत के सिद्धांत स्वामी विवेकानंद ने भारत के बाहर तक प्रसारित किए। मनुष्य के अंदर छुपे हुए मनुष्य को जगाने का कार्य स्वामी विवेकानंद ने किया। अपनी जिंदगी मातृभूमि की सेवा में लगा देना यह स्वामी विवेकानंद के जीवन का संकल्प था। लोगों के उद्धार के लिए स्वामी विवेकानंद ने अपना संपूर्ण आयुष्य समर्पित कर दिया। स्वामी विवेकानंद ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते थे जिसमें धर्म या जाति के नाम पर भेदभाव ना हो। स्वामी विवेकानंद देश के युवाओं को देश का आधार तम्मा मानते थे। उन्हें देश के युवाओं से बड़ी आशाएं थी।
1983 में अमेरिका के शिकागो में आयोजित हुए विश्वधर्म परिषद में स्वामी विवेकानंद ने भारत का नेतृत्व किया था। यह उस समय की बात है जब यूरोपियन भारती को हिंदू स्टेशन देखते थे। स्वामी विवेकानंद को मंच पर बोलने का मौका ना मिले इस बात का काफी प्रयास किया गया। उन्हें बोलने के लिए केवल 2 मिनट मिले। उनका भाषण सुनकर सारे विद्वान चकित हो गए। उसके बाद उनका अमेरिका में काफी स्वागत हुआl
स्वामी विवेकानंद स्वय को गरीबों का सेवक सेवक कहते थे।अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा’ इस पत्र स्वामी विवेकानंद जी का दूध विश्वास था। 4 जुलाई सन् 1902 को उन्होंने बेलूर मठ में देह त्याग किया।
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