Karnataka 1st PUC Hindi Prose Chapter 3 निंदा रस Questions and Answers Solution, Notes by Expert Teacher. Karnataka Class 11 Hindi Solution Chapter 3.
There are 3 Parts in Karnataka Class 11 Textbook. Here You will find Prose Chapter 3 Ninda Ras.
Karnataka 1st PUC Hindi Prose Chapter 3 – निंदा रस Solution
- State – Karnataka.
- Class – 1st PUC / Class 11
- Subject – Hindi.
- Topic – Solution / Notes.
- Chapter – 3
- Chapter Name – निंदा रस.
D) एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:
(१) धृतराष्ट्र की भुजाओं में कौनसा पुतला जकड़ गया था?
धृतराष्ट्र की भुजाओं में भीम का पुतला जकड़ गया था।
२) पिछली रात ‘क’ ‘ग’ के साथ बैठकर क्या करता रहा?
पिछली रात ‘क’ ‘ग’ के साथ बैठकर निंदा कर रहा था।
३) कुछ लोग आदतन क्या बोलते हैं?
कुछ लोग आदतन प्रकृति के वशीभूत झूठ बोलते हैं।
४) लेखक के मित्र के पास दोषों का क्या है?
लेखक के मित्र के पास दोषों का केटलाग है।
५) लेखक के मन में किसके प्रति मैल नहीं रहा?
लेखक के मन में गत रात्रि के उस मित्र के प्रति मैल नहीं रहा।
६) निन्दकों की जैसी एकाग्रता किनमें दुर्लभ है?
निन्दकों की जैसी एकाग्रता, परस्पर आत्मीयता, निमग्नता भक्तों में दुर्लभ है।
७) मिशनरी निन्दक चौबीसों घंटे निन्दा करने में किस भाव से लगे रहते हैं?
मिशनरी निन्दक चौबीसों घंटे निंदा कर्म में बहुत पवित्र भाव से लगे रहते हैं।
८) निन्दा, निन्दा करनेवालों के लिए क्या होती है?
निन्दा, निन्दा करनेवालों के लिए टॉनिक होता हैं।
९) निन्दा का उद्गम किससे होता है?
निन्दा का उद्गम हीनता और कमजोरी से होता है।
१०) कौन बड़ा ईर्ष्यालु माना जाता है ?
इंद्र बडा ईर्ष्यालु माना जाता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
(१) धृतराष्ट्र का उल्लेख लेखक ने क्यों किया है?
धृतराष्ट्र ने भी को गले लगाया रुद्राक्ष में ऐसा दिखाया कि उसके मन में खुशी है लेकिन उसके मन में तो कुछ और ही चल रहा था। लेखक से मिलने आए को इस मित्र ने हर्ष के साथ मिलने का झूठा बहाना बनाया इसी वजह से लेखक को अपने मित्र पर शक हो गया। क्योंकि उनके मन में खुशी नहीं थी।
२) निन्दा की महिमा का वर्णन कीजिए।
निंदक लोगों का ध्यान जितना भगवान पर नहीं लगता उतना निंदा करने में लग जाता है। यह लोग जहां कहीं भी इकट्ठा हो जहां कहीं भी मिल जाते हो एक दूसरे की निंदा करने में यह इतने तल्लीन और मग्न हो जाते हैं कि उन्हें बाकी लोगों की चिंता तक नहीं होती। कोई भक्त भगवान के ध्यान में अपना मन इतना नहीं लगता जितना यह लोग अपना ध्यान निंदा करने में लगाते हैं। निंदको जैसी एकाग्रता परस्पर आत्मीयता और निमग्नता भक्तों में दुर्लभ है।
3) ‘मिशनरी’ निन्दक से लेखक का क्या तात्पर्य है?
मिशनरी निंदक इस से लेखक का तात्पर्य है यह है कि इन निंदकों का किसी के साथ बैर नहीं होता। यह किसी के साथ द्वेष नहीं रखते। किसी का भी बुरा नहीं सोचते। लेकिन 24 घंटे वहां निंदा जैसे पवित्र भाव में लगे रहते हैं। उनकी नितांत निर्लिप्त तथा निष्पक्षता इसी से मालूम होती है कि वह प्रसंग आने पर अपने आप की पगड़ी भी इस आनंद से उछलते हैं जी आनंद से अन्य लोग दुश्मन की उछलते हैं। ऐसे लोगों के लिए निंदा मतलब टॉनिक होता है।
४) निन्दकों के संघ के बारे में लिखिए।
ट्रेड यूनियन के इस जमाने में निंदकों के संघ बन गए हैं। संघ में जो लोग होते हैं वह सभी जगह से खबरें लाते हैं और संघ का जो मुख्य होता है उसे वह खबरें सौंप देते हैं। यह होता है कच्चा माल। अब इसका पक्का माल वह मुखिया बनता है और अन्य सदस्यों को बहुजन हिताय में मुक्त बांटने के लिए देता है। यह फुर्सत का काम है।
५) ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित निन्दकों की कैसी दशा होती है?
ईर्षा और ड्रेस से जो प्रेरित निंदक होते हैं वह निंदक हमेशा ही दुखी रहते हैं। ऐसे निंदा 24 घंटे चलते हैं और निंदा का जल छिड़क कर कुछ शांति अनुभव करते हैं। ऐसे निंदक उनको बड़े दयनीय निंदक कहा जाता है। अपने अक्षमता से पीड़ित वह निंदक बिचारा दूसरे की सक्षमता को देख नहीं सकता। ऐसे निंदक बड़े पीड़ित निंदक होते हैं।
६) निन्दा को पूँजी बनानेवालों के बारे में लेखक ने क्या कहा है?
लेखक कहते हैं की निंदा कुछ लोगों की पूंजी होती है। इस पूंजी से वह बड़ा चौड़ा व्यापार फैलाते हैं। कई लोगों की प्रतिष्ठा ही दूसरों की कलंक कथाओं के पारायण पर आधारित होती है। दूसरों की निंदा होनी कथाएं वह बड़े ही मैग्नेटा से सुनते हैं और सुनते हैं। स्वयं को पूर्ण संत समझने की तुष्टि का अनुभव भी करते हैं।
७) ‘निन्दा रस’ निबंध का आशय अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
III ) ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:
१) आ बेटा, तुझे कलेजे से लगा लूँ।
प्रसंग. यह गद्यांश साहित्य वैभव इस पाठ्य पुस्तक के निंदा रस इस नाम के पाठ से लिया गया है। इसक पाठ के लेखक हरिशंकर परसाई है।
संदर्भ. लेखक का जो क नाम का मित्र था लेखक से गले मिलते वक्त वह यह वाक्य बोलते हैं जैसे की उसको बहुत आनंद आया है।
स्पष्टीकरण. लेखक सुबह-सुबह चाय पर रहे थे और अखबार पढ़ रहे थे तभी उनका को नाम का एक मित्र आता है और उन्हें गले से लगता है। जब क ने अपने मित्र को गले से लगा लिया तब उसे मित्र को धृतराष्ट्र की और उसके गले लग भी के पुतले की याद आ गई। जब धृतराष्ट्र भीम से कहता है कि कहां हो तुम बेटा आ तुझे कलेजे से लगा लूं।
२) अभी सुबह की गाड़ी से उतरा और एकदम तुमसे मिलने चला आया।
प्रसंग. यह गद्यांश साहित्य वैभव इस पाठ्य पुस्तक के निंदा रस इस नाम के पाठ से लिया गया है। इसक पाठ के लेखक हरिशंकर परसाई है।
संदर्भ. लेखक को पता था कि अपने मित्र को हमेशा ही झूठ बोलने की आदत रही है। इसी वजह से वह कह रहा था उसमें कोई तथ्य नहीं है यह लेखक जानता था।
स्पष्टीकरण. लेखक को यह मालूम था कि उसका जो मित्र आया है वह कल ही रात आया है। आज वह मुझसे मिलने आया है और झूठ भी बोल रहा है कि अभी-अभी गाड़ी से उतरकर एकदम तुमसे मिलने चला आया।।
३) कुछ लोग बड़े निर्दोष मिथ्यावादी होते हैं।
प्रसंग. यह गद्यांश साहित्य वैभव इस पाठ्य पुस्तक के निंदा रस इस नाम के पाठ से लिया गया है। इसक पाठ के लेखक हरिशंकर परसाई है।
संदर्भ. लेखक इस वाक्य के माध्यम से हमें कहना चाहते हैं कि कुछ लोगों की आदत और स्वभाव होता है झूठ बोलने का। वह हमेशा से ही झूठ बोलते रहते हैं।
स्पष्टीकरण. कुछ लोगों को झूठ बोलने की आदत होती है। इस झूठ बोलने से उनका कोई भी लाभ नहीं होता। फिर भी वह हमेशा से ही झूठ बोलते हैं। ऐसे लोग निर्दोष मिथ्यावादी होते हैं। ऐसा लेखक कहते हैं।
४) निन्दा का उद्गम ही हीनता और कमजोरी से होता है।
प्रसंग. यह गद्यांश साहित्य वैभव इस पाठ्य पुस्तक के निंदा रस इस नाम के पाठ से लिया गया है। इसक पाठ के लेखक हरिशंकर परसाई है।
संदर्भ. लेखक कहता है कि जो निंदा करने वाले लोग होते हैं उनमें हमेशा ही ईर्ष्या भरी हुई होती है।
स्पष्टीकरण. लेखक कहते हैं कि निंदा करने वाले जो लोग होते हैं उनमें हीनता की भावना होती है वह कमजोर होती है और इसी से निंदा की उत्पत्ति होती है। ऐसे लोग जो होते हैं वह हमेशा दूसरों का पूरा सोचते हैं और दूसरों के बारे में बुरा कहते हैं। किसी का भी अच्छा उनसे देखा नहीं जाता। ऐसे लोग खुद को अच्छा और दूसरों को हमेशा बुराई की नजर से ही देखते हैं।
५) ज्यों-ज्यों कर्म क्षीण होता जाता है त्यों-त्यों निन्दा की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है।
प्रसंग. यह गद्यांश साहित्य वैभव इस पाठ्य पुस्तक के निंदा रस इस नाम के पाठ से लिया गया है। इसक पाठ के लेखक हरिशंकर परसाई है।
संदर्भ. निंदक लोगों का स्वभाव कैसा होता है इसके बारे में लेखक ने बताया है।
स्पष्टीकरण. कई लोगों को निंदा करना ही अपना कर्तव्य लगता है। वह दूसरों की सिर्फ निंदा करते रहते हैं। और इस तरह से धीरे-धीरे निंदा करना उनकी आदत बन जाती है। यह आदमी हैं भावना से जड़े हुए होते हैं।
IV) कोष्ठक में दिए गये उचित शब्दों से रिक्त स्थान भरिए: (ईर्ष्या-द्वेष, भेद-नाशक, पूँजी, पुतला, तूफान)
१) सुबह चाय पीकर अखबार देख रहा था कि वे तूफान की तरह कमरे में घुसे।
२) छल का धृतराष्ट्र जब आलिंगन करे, तो पुतला ही आगे बढ़ाना चाहिए।
३) निन्दा का ऐसा ही भेद – नाशक अँधेरा होता है।
४) इर्ष्या – द्वेष से प्रेरित निन्दा भी होती है।
५) निन्दा कुछ लोगों की पूंजी होती है ।
V) वाक्य शुद्ध कीजिए:
१) ऐसी मौके पर हम अक्सर अपने पुतले को अंकवार में दे देते हैं।
ऐसे मौके पर हम अक्सर अपने पुतले को अंकवार में दे देते हैं।
२) पर वह मेरी दोस्त अभिनय में पूरा है।
पर वह मेरा दोस्त अभी नहीं में पूरा है।
३) निन्दा का ऐसी ही महिमा है ।
निन्दा की ऐसी ही महिमा है।
४) आपके बारे में मुझसे कोई भी बुरी नहीं कहता।
आपके बारे में मुझे कोई भी बुरा नहीं कहता।
५) सूरदास ने इसलिए ‘निन्दा सबद रसाल’ कही है।
सूरदास ने इसीलिए ‘ निन्दा सबद रसाल’ कहा है।
VI) अन्य लिंग रूप लिखिए:
मजदूर, बेटा, पति, स्त्री।
मजदूर – मजदूरनी
बेटा – बेटी
पति – पत्नी
स्त्री – पुरुष
(VII) अन्य वचन रूप लिखिए:
भुजा, कथा, दुश्मन, घंटा, कमरा, कविता, लकीर ।
भुजा – भुजाएं
कथा – कथाएं
दुश्मन -दुश्मन
घंटा -घंटाए
कमरा – कमरे
कविता – कविताएं
कविता – कविताएं
लकीर – लकीरें
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