On this page we have given a article on Debate in Hindi for Students. The name of the topic is राजनेताओं को मिलने वाला पेंशन बंद कर देना चाहिए?
Debate – राजनेताओं को मिलने वाला पेंशन बंद कर देना चाहिए?
पेंशन का अर्थ है जब कोई कर्मचारी देश के लिए कुछ कार्य करता है तो उसी के रोजगार में से कुछ पैसे सरकार बचत करके बाजू रख देती है और जब वह कर्मचारी सेवानिवृत्ति हो जाता है तो उसके बाद उसे हर महीने एक विशिष्ट रकम अदा की जाती है। सेवानिवृत्ति के बाद उसे सरकार वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती है क्योंकि जब सेवा निवृत्ति होती है तब कर्मचारियों की उम्र 60 साल से अधिक होती है और इस उम्र में वहां कोई कार्य नहीं कर सकता जिससे उसके दिनचर्या चलती रहे। भारत में सरकार ने सेवानिवृत्ति की उम्र 58 साल निश्चित की है। पेंशन के अनेक प्रकार है। जैसे की निवृत्ति पेंशन, अशक्त पेंशन, पारिवारिक पेंशन, असाधारण पेंशन। इन सभी के लिए अलग-अलग मापदंड निश्चित किए गए हैं।
सरकारी कर्मचारियों के साथ-साथ राजकीय नेताओं को भी पेंशन दी जाती है। इसकी रक्कम सबसे ज्यादा होती हैं। वह देश की जो सेवा करते हैं उसके बदले उन्हें जीवन भर पेंशन मिलती है। इस पेंशन मिलने के पीछे कुछ उद्देश्य तय किए गए हैं। जैसे के कर्मचारियों की जब सेवानिवृत्ति होती है तब उनका भविष्य सुरक्षित किया जाता है। पेंशन यह भी पैसे बचत करने का एक तरीका है। अगर सेवा में रहते हुए उसे कर्मचारियों की मृत्यु हो जाती है तब उसके परिवार का भी भविष्य इसी तरह से सुरक्षित किया जाता है और वृद्ध लोगों का जीवन सुचारु रूप से चलाया जा सकता है। भारत में पेंशन नामक प्रणाली की शुरुआत अंग्रेजों ने की थी।
नेता जितनी बार विधायक बनते हैं उन सबके लिए उनको अलग-अलग पेंशन दी जाती है। मतलब कोई एक नेता पहले भी मंत्री हो चुका है और उसकी उसे पेंशन मिलती है और वह दूसरी बार भी नेता बनता है तो उसे पद के वेतन के साथ-साथ पूर्व पद की पेंशन भी चालू रहती है। इसके साथ-साथ उन्हें अनेक सरकारी सुविधाएं और भत्ते भी मिलते है।
किसी को पेंशन देने में कोई समस्या नहीं है लेकिन इसके साथ-साथ उसके पास उसकी अपनी निजी संपत्ति कितनी है यह भी देखना चाहिए। क्योंकि इसके वजह से अमीर व्यक्ति अमीर होता जाता है और गरीब व्यक्तियों पर इन सारे कर का बोझ पड़ जाता है। नेताओं को उनकी सेवा के बदले पेंशन दी जाती है। लेकिन उसका कार्यकाल और पेंशन भी तय कर देनी चाहिए वह जितनी बार भी मंत्री बनते हैं उतनी पेंशन उनके खाते में जमा होती है और यह रक्कम जनता के कर से वसूली जाती हैं। नेताओं का चुनाव सिर्फ 5 साल के लिए हो जाता है और उन पांच सालों के बदले में उन्हें पेंशन मिलती है। इसके विपरित जब कोई कर्मचारी 58 साल कार्य करता है तभी उसे पेंशन मिल जाती है। मंत्रियों को पेंशन के साथ-साथ अन्य सुविधाएं भी मिल जाती है। कई बार इन जनप्रतिनिधि और समाज में बहुत सारा अंतर होता है। कभी-कभी लोगों के पास खाने के लिए भी पैसे नहीं होते। ऐसे वक्त में जन प्रतिनिधियों का राजा बनकर रहना यह गलत बात होती है।
पंजाब यह एक ऐसा राज्य है जहां पर यह निर्णय लिया गया कि कोई भी व्यक्ति कितनी बार भी विधायक क्यों ना बने उसे सिर्फ एक ही पेंशन दी जाएगी। मंत्रियों का कार्यकाल और पेंशन की रकम निश्चित कर लेनी चाहिए। इसी के साथ-साथ उन नेताओं ने अपने कार्यकाल में देश के लिए क्या-क्या कार्य किए हैं उसका अहवाल भी लेना चाहिए। नेता देश की सेवा करने के लिए होते हैं। वह जनता के प्रतिनिधि, सेवक होते हैं। यह सरकारी नौकर नहीं होते। इसीलिए यह जब निवृत हो जाते हैं तो इन की माल माता का विवरण इसे लेना चाहिए और मालमत्ता की एक मर्यादा निश्चित कर लेनी चाहिए अगर मालमत्ता सीमित मर्यादा से बाहर हो तो उनकी पेंशन बंद कर देनी चाहिए।
इसी के साथ-साथ उनका जो सरकारी सुविधा प्राप्त होती है उन पर भी रोक लगाना चाहिए। क्योंकि पेंशन के साथ-साथ उनका अनेक तरह के भत्ते भी मिलते हैं और जनता के ऊपर कर का बोझ बढ़ता ही जाता है। इसी के साथ साथ जिस तरह से नई नई योजनाएं लागू होती हैं, पंचावर्षिक योजनाएं बनती हैं उसी तरह से वस्तुओं की कीमत भी बढ़ती है। इसीलिए राज नेताओं को जो पेंशन मिलती है उसकी कुछ माप दंड निश्चित कर लेने चाहिए जिसकी वजह से उसका बोझ सामान्य जनता पर ना पड़े। इसके लिए आज कहीं नई कानून पारित करने होंगे।
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