On this page we have given a article on Debate in Hindi for Students. The name of the topic is क्या जानवरों पर चिकित्सा अनुसंधान उचित है?
Debate – क्या जानवरों पर चिकित्सा अनुसंधान उचित है?
हमारे पूरी दुनिया में जैसे-जैसे विकास होता जाता है वैसे-वैसे ही नए-नए अविष्कार होते हैं। इसी तरह नए-नए रोगों की भी उत्पत्ति होती रहती है। यह रोग किस वजह से हुए हैं इन पर औषधि या कौन-कौन सी है इन सब का वैज्ञानिक अभ्यास करते हैं और उस पर नए-नए औषधियों की निर्मिती करते हैं। इन औषधियों की खोज करने के लिए उनको कभी-कभी काफी समय लगता है। यह आवश्यक है मानव के लिए हानिकारक है या उपकरण यह बात है जानने के लिए यह वैज्ञानिक उन औषधियों का पहला प्रयोग जानवरों पर करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यूनानी चिकित्सा और वहां के वैज्ञानिकों ने औषधीय का जानवरों पर प्रयोग करना शुरू किया था। ऐसे प्रयोग करने वाला पहला व्यक्ति अरस्तू था।
जिस औषधि की भी निर्मित की जाती है उसे औषधि का पहला प्रयोग जानवरों पर किया जाता है क्योंकि जानवर और मनुष्य में कई प्रकार की समानता होती है। मनुष्य और जानवरों का शरीर समस्याओं के लिए माना गया है। इसका दूसरा कारण यह भी है कि उनकी आयु और मर्यादा बहुत कम होती है और इस वजह से उनके कई पीढ़ियां तक हम परीक्षण कर सकते हैं। इस वजह से जानवरों का उपयोग चिकित्सा अनुसंधान में महत्वपूर्ण माना गया है। चिकित्सा के लिए चूहा मेंढक बिल्लियां सूअर ऐसे जानवरों का इस्तेमाल किया जाता है। इन जानवरोंका पालन किया जाता है। सबसे अधिक चिकित्सा जो हम पर की जाती है। क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि चूहे का जो डीएनए होता है वह मनुष्य के साथ 98% मिलता है। मनुष्य को कई तरह की बीमारियां होती है जैसे मधुमेह, कैंसर, गोबर, रक्तचाप, पार्किसंस, हृदय रोग लेकिन यह बीमारियां जानवरों को भी होती है इस वजह से चिकित्सा अनुसंधान में औषधियों का पहला प्रयोग जानवरों पर ही किया जाता है।
जब औषधीय का जानवरों पर प्रयोग किया जाता है तब उसके परिणाम और दुष्परिणामों की भी जांच की जाती है। उसे औसत का जानवरों पर क्या असर होता है यह वैज्ञानिकों के निरीक्षण में देखा जाता है और उसके बाद ही वह औषधि मनुष्य के लिए सही है या नहीं इस निष्कर्ष पर वैज्ञानिक पहुंचते हैं। इस वजह से ही हम कई बीमारियों से बच सकते हैं। जब इन औषधों का जानवरों पर प्रयोग किया जाता है तो उनको जो दर्द होता है उसका समय बहुत ही काम होता है। लेकिन इससे मानव को जो खुशी मिलती है उसका समय बहुत लंबा होता है। इस वजह से चिकित्सक बीमारियों पर अभ्यास कर सकते हैं और उसी के अनुसार ही नए-नए दवाइयों का औषधीय का निर्माण कर सकते हैं। यह किया गया प्रशिक्षण हमारे दवाइयां टीकाकरण के लिए जो औषधि इस्तेमाल होती है उसका विकास करने में मदद करता है। यही विकास मनुष्य को रोगों से बचने के लिए मदद करता है।
लेकिन कहीं वैज्ञानिक की यह भी मानते हैं कि जानवरों पर इन औषधि योग का प्रयोग करना चिकित्सा अनुसंधान करना यह बहुत गलत बात है। इसके बहुत से नुकसान भी है। वह कहते हैं कि पशु और मानव में बहुत अंतर होता है। कभी-कभी पशु ऊपर जो दवाई काम कर जाती है वही दवाई मनुष्य पर लागू नहीं होती। अगर कोई दवाई पशुओं को दे तो पशुओं की प्रतिक्रिया उसे पर अलग हो सकती है और वही दवाई अगर मानव को दे तो उसकी प्रतिक्रिया अलग हो सकती है क्योंकि जानवर और इंसान यह दोनो अलग होते हैं और चिकित्सा अनुसंधान यहां जानवरों को जो अधिकार मिलते हैं उसका उल्लंघन भी करता है। जब जानवरों पर औषधि उनका प्रयोग किया जाता है तब उनको भी दर्द होता है और वैसे भी जानवर आखिर जानवर ही होते हैं उनको मानव नहीं माना जा सकता।
जब औषधीय का जानवरों पर प्रयोग किया जाता है तब पहले उनके शरीर में कई विघातक बीमारियों वाले रसायन छोड़े जाते हैं। ताकि उन जानवरों को भी वही बीमारी हो और उसके बाद उसे बीमारी पर जो औषधीय बनाई जाती है उनका प्रयोग उन जानवरों पर किया जाता है। वैज्ञानिकों के निगरानी में देखा जाता है के जानवरों पर उसे औषधीय का क्या असर हो रहा है। उसके बाद यह औषधि मानव के लिए उपलब्ध की जाती है। लेकिन जब इन औषधुन का प्रयोग किया जाता है तब कभी-कभी जिन जानवरों पर यह प्रयोग हुआ है वह जानवर मार दिए जाते हैं या मर भी जाते हैं। इससे जानवरों को बहुत पीड़ा होती है।
जानवरों पर चिकित्सा अनुसंधान करना बंद कर देना चाहिए। क्योंकि इस वजह से जानवरों को बहुत पैदा होती है और उनके अधिकारों का भी उल्लंघन होता है। इसमें कई जानवरों की जान भी चली जाती है और ऐसे किसी की जान लेकर मानव अपने जीवन का विकास नहीं कर सकता।
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