MP Board Class 9 Hindi Navneet Chapter प्रेम और सौंदर्य Solution
Madhya Pradesh State Board Class 9 Hindi Navneet Chapter प्रेम और सौंदर्य full exercise question answers. Every questions answer is prepared by expert Hindi Navneet teacher.
अभ्यास
बोध प्रश्न
(क) अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1.)’सुजान अनीति करै’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
कभी कहता है कि सुजान तुम मेरी प्रेमिका हो। तो तुम ऐसे अनीति के कार्य क्यो करती हो? मैं तुम्हे देखने के लिए आतुर रहता हूं, हमेशा ललचाया रहता हूं और तुम मुझे अपने दर्शन ही नही देती। ‘सुजान अनीति करै’ से कवि का यह तात्पर्य है।
2.) प्रेम के मार्ग के विषय में कवि का क्या मत है?
कवि कहता है प्रेम का मार्ग बहुत सरल है, सहज है। लेकिन इस प्रेम में सयानापन नही होता। प्रेम के मार्ग के विषय में कवि का यह मत है
3.) प्रिय के बोलने में कवि को किसकी वर्षा होती दिखाई देती है?
प्रिय के बोलने में कवि को फूलों की वर्षा होती दिखाई देती है।
4.) ‘मोहन मयी’ कौन हो गई है?
‘मोहन मयी’ राधा हो गई है।
(ख) लघु उत्तरीय प्रश्न-
1.) कवि ने सुजान का नाम लेकर क्यों उलाहना दिया है?
पहले तो वह घनानंद से प्रेम करती थी लेकिन अब वह उसके प्रेम की बातों में बहुत उदास रहने लगी है। उसकी अवहेलना करनी लगी है इस वजह से कवि ने सुजान का नाम लेकर उलाहना दिया है।
2.) कवि ने स्नेह के मार्ग को किस तरह का बताया है और क्यों?
कवि ने स्नेह के मार्ग को सहज और सरल बताया है कवि कहता है की जो प्रेमी सच्चे होते है वही इस रास्ते पर चलते हैं। वे अपनापन भूल जाते है लेकिन इस प्रेम में सयानेपन को स्थान नहीं है। जो लोग कपटी होते हैं वह इस मार्ग पर चलने से डरते है।
3.) दोउन को रूप-गुन दोऊ बरनत फिरै की स्थिति में कौन-कौन हैं और क्यों?
दोउन को रूप-गुन दोऊ बरनत फिरै इस स्थिति में दोउन को रूप-गुन में श्रीकृष्ण और राधा है। वे दोनो हमेशा एक दूसरे से जुड़े रहते है, एक दूसरे के साथ रहते है, एक दूसरे की प्रशंसा करते हैं।
(ग) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-
1.) घनानंद की विरह वेदना को अपने शब्दों में लिखिए।
कवि घनानंद इन्होंने अपने कविता में प्रेम संयोग और प्रेमियों का एक दूसरे से अलग होना इस भावना का सुंदर वर्णन किया है। उनके शब्द हृदयस्पर्शी हैं। कविता की नायिका जो है वह अपने प्रियकर की राह सबेरे से सांझ तक देखती हैं वह अपने प्रियतम के पास पहुंचाना है।
2.) घनानंद के प्रिय के सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
घनानंद जब अपने प्रिय के सौंदर्य का वर्णन करते हैं तब वह कहते हैं कि उसका मुख बहुत सुंदर और सुशोभित है। उसका वर्ण गौर तथा तेजस्वी है। उसकी आंखें बड़ी-बड़ी है। जब जब वह हस्ती है तब तक ऐसा लगता है जैसे फूलों की वर्षा हो रही हो। उसके बालों में जो लेते हैं वह जब उसके गालों पर गिरती है तो उन्हें बहुत शोभा आती है।
3.) श्रीकृष्ण की बाल छवि का वर्णन कीजिए।
श्रीकृष्ण की बाल छवि का वर्णन करते हुए कविवर देव कहते है के श्रीकृष्ण ने पीला वस्त्र पहना है, उनके गले मे वनमाला है। उनके सांवले देह पर यह बहुत सुंदर दिखाई दे रहा है। पैरों में पायल बज रही है, कमर में करधनी है, माथे पर मुकुट शोभा दे रहा है और उनके मुख पर हंसी चांदनी जैसी लग रही है।
4.) राधा और श्रीकृष्ण के संयोग की स्थिति में उनके हाव-भावों का वर्णन अपने शब्दों में लिखिए।
श्री कृष्ण का मन राधामय हो गया है और राधा का मन कृष्णमय हो गया है। दोनों एक दूसरे से बातें करते हैं कभी-कभी जोर-जोर से हंसते हैं। उन दोनों का मन एक दूसरे में घुल मिल गया है। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के हो गए हैं।
5.) निम्नलिखित काव्यांश की प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए
अ-) “झलकें अति सुन्दर आनन गौर, छकै दुग राजत काननि छवै हँसि बोलन में छवि फूलन की बरषा, उर ऊपर जाति है है। ”
कभी घनानंद कहते हैं कि कविता की नई का का वर्णन अत्यंत सुंदर है। उसके नैन विशाल है। उन्हें देखकर ग्रुप तथा महसूस होती है। जब नायिका हंस कर बातें करती है तब ऐसा लगता है कि फूलों की बरसात उसके वक्षस्थल पर हो रही हूं। उसका कंठ कमल के पंक्तियों जैसा है।
ब-) “साँझ ते भौर लौं तारनि ताकियो, तारनि सौ इकतार न टारति।
जी कहूँ भावतो दीठि पर घनआनंद आँसुनि औसर गारति।”
कवि घनानंद कहते हैं कि कविता भेजो नायक है वह अपने प्रिय तम की प्रतीक्षा सुबह से शाम तक करती है वह उपवन जहां पर उसका प्रियतम गया है उसे मार्ग पर नज़रें गढ़ाई बैठी है अपने प्रियतम की प्रतीक्षा कर रही है। जब कभी उसे अपने प्रियतम नजर आता है तो वह बहुत आनंदित हो जाती है। जब वह प्रतीक्षा करती है तब उसे थकावट नहीं लगती। और जब उसे अपना प्रियतम नजर आता है तब उसके आंखों से आंसू गिरने लगते हैं।
स-) “अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं। तहाँ साँचे चलें तजि आपनपौ झझक कपटी जे निसांक नहीं। घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक से दूसरों आँक नहीं। तुम कौन धाँ पाटी पड़े हो लला मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं ।”
प्रेम का मन का सरल और सहज होता है ऐसा कभी घनानंद कहते हैं उसमें सयानापन नहीं होता। जो लोग कपटी होते हैं वह प्रेम की मार्ग पर नहीं चलते। सच्चे लोग अपने आप को भूलकर प्रेम के मार्ग पर चलते हैं। कवि कहते हैं कि प्यार सूजन मेरी बात तुम सुन लो मेरे मन में तुम्हारे सिवाय और किसी का भी नाम किसी की भी छवि नहीं है। तुमने हमारा मन पूरी तरह से वश में कर लिया है यह किस तरह की पट्टी पढ़कर आए हो । इतना सब करके अब तुम मुझे अपना दर्शन भी नही देते।
काव्य सौन्दर्य
1.) घनानंद के छंदों को भाषागत विशेषताएँ लिखिए।
कवि कहना नंदन के कविता की भाषा सरल है उसमें सुंदरता है। जो भी कविता को पड़ता है उसे कविता का प्रभाव पड़ने वाले पर पड़ता है। इस कविता में दोगे सवैया कहावतें मुहावरों का प्रयोग भी किया गया है। भाषा का रूप शुद्ध है।
2.) निम्नलिखित काव्यांश में अलंकार पहचान कर लिखिए
अ- अंग-अंग तरंग उठे दुति की परिहै मनो रूप अबै धर च्चै।
उत्तर – उत्प्रेक्षा अलंकार
आ साँझ ते भोर लौ तारनि ताकियो, तारनि सौ इकतार न टारति
उत्तर – अनुप्रास अलंकार
इ- मोहन-सोहन जोहन की लगिये रहे आँखिन के उर आरति ।
उत्तर – पदमैत्री और अनुप्रास
ई- तुम कौन धौ पाटी पढ़े हो लला मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं
उत्तर – श्लेष अलंकार
निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य प्रयोग कीजिए-
अनीति करना, हा हा खाना, दुहाई करना, टेक लेना, प्यासा मारना, बाँक न होना, मन लेना,
अनीति करना –
आजकल किसी पर भी भरोसा नहीं कर सकते कभी भी कोई भी अनीति करता है।
हा हा खाना –
आजकल सरकारी कार्यालय में अपना काम करने के लिए हा हा खानी पड़ती है।
दुहाई करना –
मां अपने बेटे को दुहाई देते हैं।
टेक लेना –
राधा गिने जा रही थी तब उसने भैया की टेक ले ली।
प्यासा मारना –
घनानंद अपने प्रेमिका को नहीं देख पा रहे थे मतलब उनकी प्रेमिका उन्हें प्यासा मार रही थी।
बाँक न होना –
जब हम प्रेम करते है उसमे बाँक न होनी चहिए।
मन लेना-
राधा ने कृष्ण का मन ले लिया।
4.) निम्नलिखित ब्रजभाषा के शब्दों के हिन्दी मानक रूप लिखिए-
पॉयनि, हिये, छके, सूधों, धौ,
पॉयनि – पैर, पद
हिये- हृदय
छके – प्रसन्न होना, तृप्त होना।
सूधों – सरल, सीधा
धौ- सी
घनानंद और देव के छंदों में कौन-सा रस है? समझाकर स्पष्ट कीजिए।
घनानंद के छंदों में वियोग श्रृंगार का वर्णन है और देव कवि के छंदों में वात्सल्य का रस है।
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