Karnataka 2nd PUC Hindi Prose Chapter 2 कर्तव्य और सत्यता Questions and Answers Solution, Notes by Expert Teacher. Karnataka Class 12 Hindi Solution Chapter 2.
There are 3 Parts in Karnataka Class 12 Textbook. Here You will find Prose Chapter 2 Kartavya aur satyata.
Karnataka 2nd PUC Hindi Prose Chapter 2 – कर्तव्य और सत्यता Solution
- State – Karnataka.
- Class – 2nd PUC / Class 12
- Subject – Hindi.
- Topic – Solution / Notes.
- Chapter – 2
- Chapter Name – कर्तव्य और सत्यता.
- I) एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:
1.) हम लोगों का परम धर्म क्या है ?
कर्तव्य वह वस्तु है जिसे करना हम लोगों का परम धर्म है।
2.) कर्त्तव्य करने का आरम्भ पहले कहाँ से शुरू होता है?
कर्तव्य करने का आरंभ पहले घर से ही शुरू होता है।
3.) कर्त्तव्य किस पर निर्भर है ?
कर्तव्य करना न्याय पर निर्भर है और वह न्याय ऐसा है जिसे समझने पर हम लोग प्रेम के साथ उसे कर सकते हैं।
4.) कर्त्तव्य करने से क्या बढ़ता है?
जब हम कर्तव्य करते हैं तो हमारे चरित्र की शोभा बढ़ती है।
5.) धर्म– – पालन करने में सबसे अधिक बाधा क्या है?
धर्मापालन करने के मार्ग में सबसे अधिक बाधा चित्त की चंचलता, उद्देश्य की आवश्यकता और मां की निर्बलता से पड़ती है।
6.) मन ज्यादा देर तक दुविधा में पड़ा रहा तो क्या आ घेरेगी ?
मां ज्यादा देर तक दुविधा में पड़ा रहा तो स्वार्थपरता उसे आ घेरेगी।
7.) झूठ बोलने का परिणाम क्या होगा?
झूठ बोलने का परिणाम यह होता है कि उसे घर में कोई काम नहीं होता और सब लोग बड़ा दुख भोगते रहते हैं।
8.) किसे सबसे ऊँचा स्थान देना उचित है?
सत्यता को सबसे ऊंचा स्थान देना उचित है।
9.) जो मनुष्य सत्य बोलता है, वह किससे दूर भागता है?
जो मनुष्य सत्य बोलता है वह आडंबर से दूर भागता है और उसे दिखावा नहीं रुचता है।
10.) किनसे सभी घृणा करते हैं?
झूठे से सभी घृणा करते हैं।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
1.) घर और समाज में मनुष्य का जीवन किन–किन के प्रति कर्त्तव्यों से भरा पड़ा है?
. मनुष्य के जीवन की कर्तव्यों की शुरुआत उसके घर से ही होती है। यहां लड़कों का कर्तव्य माता-पिता की ओर माता-पिता का कर्तव्य लड़कों की ओर देख पड़ता है। इसके अलावा भी पति-पत्नी, स्वामी सेवक, स्त्री पुरुष इनके बहुत सारे कर्तव्य है। घर के बाहर भी हम जब जाते हैं तब मित्र पड़ोसी और संबंधित लोगों के परस्पर्म कर्तव्यों को देखते हैं। पढ़ ले इन सभी कर्तव्य से मनुष्य का जीवन भर पड़ा है जहां भी देखो सभी जगह कर्तव्य ही कर्तव्य देख पड़ते हैं।
2.) मन की शक्ति कैसी है?
हम सब लोगों में मां की एक शक्ति ऐसी है जो हमें सभी बुरे कार्यों को करने से रुकती है और अच्छे कामों करने के लिए हमें प्रोत्साहित करती है। यहां पर बहुत बार ऐसा देखा गया है कि जब कोई मनुष्य खोटा काम करता है तो वह ले जाता है और मन ही मन में दुखी हो जाता है। यह बात उसे कोई को भी नही कहता की तुमने गलत काम किया है। फिर भी उसे शर्मिंदगी महसूस होती है। इसीलिए अगर कोई काम करने से हमारा मन हमें रोकता है तो उसे कम को हमें नहीं करना चाहिए।
3.) धर्म– पालन करने के मार्ग में क्या–क्या अड़चन आते हैं?
धर्म का पालन करते वक्त हमारे रास्ते में सबसे अधिक बाधा चित्त की चंचलता, उद्देश्य की अस्थिरता और मन की निर्बलता से पड़ती है। मनुष्य जब अपने कर्तव्य करने लगता है तब उस मार्ग में आत्मा के अच्छे बुरे कार्यों का ज्ञान और दूसरी और अलसी और स्वार्थपरता रहती है। बस मनुष्य इन्हीं दोनों के बीच में पड़ा रहता है और अंत में यदि उसका मन पक्का हुआ तो वह अपनी आत्मा को बात मानकर अपने धर्म का पालन करता है।
4.) अंग्रेज़ी– जहाज बीच समुद्र में डूबते समय पुरुषों ने कैसे अपना धर्म निभाया ?
जब अंग्रेजी जहाज समुद्र के बीच में डूब रहा था उसे वक्त उसे वक्त उसे जहाज पर बहुत सारी स्त्रियां थी और पुरुष भी थे। उनको बचाने के लिए सारे उपाय किए गई। पर जब कोई उपाय सफल न हुआ तब जितनी स्त्रियां उस जहाज पर थी उन सबको नाम पर चढ़ा कर भेज दिया गया। जितने मनुष्य उसे जहाज पर बच गए थे उन्होंने उसकी छत पर जाकर ईश्वर को धन्यवाद किया कि वह अपने कर्तव्य का पालन कर सके और उसे जहाज पर जो स्त्रियां थी उनके प्राणों की रक्षा कर सके।
5). झूठ की उत्पत्ति और उसके कई रूपों के बारे में लिखिए।
झूठ की उत्पत्ति पाप कुटिलता और कायरता इनके कारण होती है। इस दुनिया में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो झूठ बोलने को अपनी चतुराई मानते हैं और सत्य को छुपा कर अपने आप को बचा लेने में अपना गौरव मानते हैं। बहुत से लोग सच्चाई का इतना कम ध्यान रखते हैं क्या वह अपने सेवकों को स्वयं झूठ बोलना सीखते हैं। झूठ बोलने की भी कई रूप होते हैं जैसे कि चुप रहना, किसी भी बात को बढ़ा चढ़ा कर कहना, बातों को छुपा देना, भेद बदलना, दूसरों की हां में हां मिलना, किसी को वचन देकर उसका पालन न करना इत्यादि।
6) मनुष्य का परम धर्म क्या है? उसकी रक्षा कैसे करनी चाहिए?
मनुष्य का परम धर्म यह है कि सत्य बोलना और उसी को सबसे श्रेष्ठ मानना। कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहे उसी से हमारी कितनी भी हानि क्यों ना हो। जब हम सत्य बोलते हैं तब समझ में हमारा सम्मान बढ़ता है और हम समझ में खुशी से अपना समय बिता सकते हैं। क्योंकि सच्चे लोगों को सभी लोग चाहते और झूठे लोगों से सभी लोग घृणा करते हैं। यदि हम सत्य बोलने को अपना धर्म मानेंगे तो हम अपने कर्तव्यों का पालन कर सकेंगे। हमें हमारे आत्मा के कहने पर ही विश्वास रखना चाहिए और सत्य की ही रक्षा करनी चाहिए।
7.) ‘कर्त्तव्य पालन और सत्यता के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है। कैसे ? स्पष्ट कीजिए।
जो मनुष्य अपने कर्तव्य का पालन करता है वह कोई भी कम करें उसे काम में उसकी सत्यता दिखाई देती है। वह सही समय पर सही कामों को सही तरीके से करता है। संसार का ऐसा कोई भी काम नहीं है जो झूठ बोलने से चल सकता है। अगर सभी झूठ बोलने लगे तो किसी भी का भी काम नहीं होगा और सभी लोगों को दुख ही दुख भोगना पड़ेगा।
III) ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:
1) ‘जिधर देखो उधर कर्त्तव्य ही कर्तव्य देख पड़ते हैं।‘
प्रसंग. यह गद्यांश साहित्य गौरव इस पाठ्य पुस्तक के कर्तव्य और सत्यता इस पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक डॉ. श्यामसुंदर दास है।
संदर्भ . हमारे जीवन में कर्तव्य का क्या महत्व है इस बारे में लेखक हमें बताते हैं।
स्पष्टीकरण. लेखक कहते हैं कि कर्तव्य यह वह वस्तु है जिसे करना हम लोगों का परम धर्म है। अगर हम हमारा कर्तव्य नहीं करेंगे तो हम लोगों की दृष्टि में गिर जायेंगे। इस कर्तव्य का आरंभ है हमारे घर से ही होता है। क्योंकि यह लड़कों का कर्तव्य माता-पिता की ओर और माता-पिता का कर्तव्य लड़कों की ओर देख पड़ता है। हमारे समाज के बारे में भी अनेक कर्तव्य है घर के बाहर जब हम निकलते हैं तब हम मित्र, पड़ोसियों और प्राजोंओ के परस्पर कर्तव्यों को देखते हैं। हमारा संसार मनुष्य की कर्तव्य से भरा पड़ा है।
2.) ‘कर्त्तव्य करना न्याय पर निर्भर है।
प्रसंग. यह गद्यांश साहित्य गौरव इस पाठ्य पुस्तक के कर्तव्य और सत्यता इस पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक डॉ. श्यामसुंदर दास है।
संदर्भ . कर्तव्य करना न्याय पर निर्भर है यह वाक्य लेखक कर्तव्य का महत्व बताते हुए कहते है।
स्पष्टीकरण . लेखक कहते हैं कि हम कहीं पर भी जाए हमें हमारा एक कर्तव्यों का पालन करना ही पड़ता है। इसीलिए संसार में मनुष्य का जीवन कर्तव्य उनसे ही भरा पड़ा है। जहां भी जाओ इधर भी देखो उधर कर्तव्य ही कर्तव्य दिखाई पड़ते हैं। हमे हमारे कर्तव्यों का पालन हमेशा करना चाहिए। जब हम अपने कर्तव्य का पालन पूरी निष्ठा से करते हैं तब हम लोगों के चरित्र की शोभा पड़ती है। कर्तव्य करना न्याय पर निर्भर है और वह ऐसा है जिसे समझने पर हम लोग प्रेम के साथ उसे कर सकते हैं।
3.) “इसलिए हमारा यह धर्म है कि हमारी आत्मा हमें जो कहे, उसके अनुसार हम करें।‘
प्रसंग. यह गद्यांश साहित्य गौरव इस पाठ्य पुस्तक के कर्तव्य और सत्यता इस पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक डॉ. श्यामसुंदर दास है।
संदर्भ . लेखक यहां पर रहते हैं कि हमारी आत्मा जो कहती है इस धर्म का पालन हमें करना चाहिए।
स्पष्टीकरण . लेखक कहते कि हमारी आत्मा जो कहती है वही कार्य हमें करना चाहिए धर्म भी यही कहता है। जब हम बुरे कार्य करते हैं तो वह बुरे काम करने से हमारा मन हमें रोकता है। अगर हम बुरे कार्य करते हैं तो हमारा मन हमें पश्चात आपके लिए भी मजबूर करता है।
4.) “इसी प्रकार जो लोग स्वार्थी होकर अपने कर्त्तव्य पर ध्यान नहीं देते, वे संसार में लज्जित होते हैं और सब लोग उनसे घृणा करते हैं।‘
प्रसंग. यह गद्यांश साहित्य गौरव इस पाठ्य पुस्तक के कर्तव्य और सत्यता इस पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक डॉ. श्यामसुंदर दास है।
संदर्भ . जो लोग स्वार्थी होते हैं उसके बारे में लेखक ने इस वाक्य में कहा है।
स्पष्टीकरण. जो लोग स्वार्थी होते हैं वह अपने कर्तव्य नहीं करते ऐसे लोग संसार में लज्जित होते हैं और सभी लोग उनसे घृणा भी करते हैं।
5.) ‘सत्य बोलने ही से समाज में हमारा सम्मान हो सकेगा और हम आनंदपूर्वक हमारा समय बिता सकेंगे।‘
प्रसंग. यह गद्यांश साहित्य गौरव इस पाठ्य पुस्तक के कर्तव्य और सत्यता इस पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक डॉ. श्यामसुंदर दास है।
संदर्भ . इस वाक्य में लेखक ने सत्य का वर्णन किया है।
स्पष्टीकरण. जब हम सत्य बोलते हैं तो हमें उसे सत्य से कितनी भी हानि हो समझ में हमारा सम्मान हो सकता है। कर्तव्य और सत्यता के बीच बहुत बड़ा संबंध है। जब हम अपने कर्तव्य का पालन सत्य के साथ करते हैं तो हमारे चरित्र की शोभा बढ़ाती है। इसीलिए हमें कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए क्योंकि सच्चे लोग झूठ से घृणा करते हैं पोस्ट अगर हम सत्य बोलते हैं तो ही समझ में हमारा सम्मान होता है और हम आनंदपूर्वक हमारा समय बिता सकते हैं।
- IV) वाक्य शुद्ध कीजिए:
1.) मन में ऐसा शक्ति है।
मन में ऐसी शक्ति है।
2.) तुम तुम्हारे धर्म का पालन करो।
तुम अपने धर्म का पालन
3.) उसे दिखावा नहीं रुचती है।
उसे दिखावा नहीं रूचता हैं।
4.) लोगों ने झूठी चाटुकारी करके बड़े-बड़े नौकरियाँ पा लीं ।
लोगों ने झूठी चाटुकार करके बड़ी-बड़ी नौकरियां पा ली।
5.) मनुष्य के जीवन कर्त्तव्य से भरा पड़ा है।
मनुष्य का जीवन कर्तव्य से भरा पड़ा है।
- V) कोष्ठक में दिये गए उचित शब्दों से रिक्त स्थान भरिए
( सम्मान, घृणा, सत्य, कर्तव्य, प्रवृत्ति)
1.) सच्चाई की ओर हमारी प्रवृत्ति झुकती है।
2.) मनुष्य का परम धर्म सत्य बोलना है।
3.) स्वार्थी लोग अपने कर्तव्य पर ध्यान नहीं देते।
4.) कुत्सित लोगों से सभी घृणा करते हैं।
5.) सत्य बोलने से हमारा सम्मान होगा ।
- VI) निम्नलिखित वाक्यों को सूचनानुसार बदलिए:
1) झूठे से सभी घृणा करते हैं। (भविष्यत् काल में बदलिए)
झूठ से सभी घृणा करेंगे।
2.) वह मेरी किताब की चोरी करता है। (भूतकाल में बदलिए)
उसने मेरी किताब चोरी की।
3.) हमारा जीवन सदा अनेक कार्यों में व्यस्त रहेगा। (वर्तमान काल में बदलिए)
हमारा जीवन सदा अनेक कार्यों में व्यस्त रहता है।
VII ) लिंग पहचानिए :
शक्ति, काम, धर्म, दृष्टि, बात नौकरी, मार्ग, मिठाई ।
स्रीलिंग-
दृष्टि
नौकरी
बात
मिठाई
पुल्लिंग –
शक्ति
काम
धर्म
मार्ग
VIII) निम्नलिखित शब्दों के साथ उपसर्ग जोड़कर नए शब्दों का निर्माण कीजिए:
चरित्र, स्वार्थ, धर्म, मान, सत्य |
उपसर्ग | मूलशब्द | नयाशब्द |
कु | चरित्र | कुचरित्र |
पर | धर्म | परधर्म |
सम | मान | सम्मान |
नि | स्वार्थ | निस्वार्थ |
अ | सत्य | असत्य |
IX निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय अलग कर लिखिए:
सत्यता, अस्थिरता, चंचलता, मनुष्यता, आवश्यकता, कायरता ।
शब्द | प्रत्यय | मूलशब्द |
सत्यता | ता | सत्य |
अस्थिरता | ता | अस्थिर |
चंचलता | ता | चंचल |
मनुष्यता | ता | मनुष्य |
आवश्यकता | ता | आवश्यक |
कायरता | Ta | कायर |
X अन्य वचन रूप लिखिए:
नौकरी, स्त्री, रीति, वस्तु, आज्ञा ।
नौकरी – नौकरियां
स्त्री – स्त्रीया
रीति – रीतियां
वस्तु -. वस्तुएं
आज्ञा- आज्ञाए
विलोम शब्द लिखिए:
प्रारम्भ, सत्य, धर्म, उन्नति, सफल, ऊँचा, अच्छा, आदर, निर्बल, स्थिर ।
प्रारम्भ – अंत
सत्य-असत्य
धर्म – अधर्म
उन्नति – अधोगति
सफल- असफल
ऊँचा- नीचा
अच्छा- बुरा
आदर- अनादर
निर्बल- साहसी, सबल
स्थिर – अस्थिर
Also See: Chapter No. 7 Question Answer Solution