Karnataka 1st PUC Hindi Poem Chapter 6 तुम आओ मन के मुग्ध गीत Questions and Answers Solution, Notes by Expert Teacher. Karnataka Class 11 Hindi Solution Chapter 6.
There are 3 Parts in Karnataka Class 11 Textbook. Here You will find Poem Chapter 6 Tum aao man ke mugdh meet.
Karnataka 1st PUC Hindi Poem Chapter 6 – तुम आओ मन के मुग्ध गीत Solution
- State – Karnataka.
- Class – 1st PUC / Class 11
- Subject – Hindi.
- Topic – Solution / Notes.
- Chapter – 6
- Chapter Name – तुम आओ मन के मुग्ध गीत.
I) एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:
१) कवि अपने मित्र से क्या कहता है?
कवि अंधकार में डूबा है वह आकर अंधकार दूर कर दे ऐसे कवि अपने मित्र से कहता है।
२) कवि अपने मित्र का स्वागत कैसे करता है?
सिर को झुकाकर, नवाकर कवि अपने मित्र का स्वागत करता है।
३) कवि किससे बिछुड़कर रह गया है?
अपने मुग्ध मित्र से बिछुड़कर रह गया है।
४) ‘तुम आओ मन के मुग्ध मीत’ कविता के कवि कौन हैं?
डॉ. सरगु कृष्णमूर्ति यह कवि ‘तुम आओ मन के मुग्ध मीत’ कविता के कवि हैं?
II) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
१ ) अपने मुग्ध मित्र से बिछुड़कर कवि की आत्मा कैसे तड़प रही है?
कवि कहता है की तुम मेरे मित्र हो मेरी मदद करो। मेरा जीवन अंधेरे से घिरा हुआ है तुम आकर इसे प्रकाशमान करो। तुम मेरे जीवन – मृत्यु के साथी हो। मैं तुम्हारे सामने नतमस्तक हूं। तुम्हारा स्वागत करता हूं। तुम्हारे जीवन में आने से मेरा जीवन प्रकाश, उजाले से भर जाएगा।
२) कवि अपने मित्र को किन-किन शब्दों में पुकारता है?
कवि अपने मित्र को आशा, शोभा के मीत, मधुरगीत, मेरे जीवन मृत्यु के मीत, सगुण निर्गुण के मीत, मुग्धमीत इन शब्दों से पुकारता है।
३) कवि अपने मित्र की जुदाई से कैसे व्याकुल हो रहा है?
कवि कहते हैं कि मैं तुम्हारी इतनी दिनों से राह देख रहा हूं, ऐसा लग रहा है कि तुमसे मिलके युग बीत गए हैं। फिर भी मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं। कवि को पूरी दुनिया किसी न किसी स्वार्थ में फसी हुई लगती हैं तुम एक ही हो जो मुझे निस्वार्थी लगते हो।
४) कवि की दुःखी आत्मा का परिचय दीजिए।
कवि कहते है कि मुझे दुःख, दीनता और दरिद्रता ने घेरा है। मैं बहुत दुःखी हो गया हूं। मेरे मित्र तुम आओ और मुझे इन सब में से छुटकारा दे दो।
III) ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए:
झन झनन झनन झंझा झकोर से झंकृत यह जीवन निशीथ
सब क्षणिक, वणिक वत् स्वार्थ मन तुम एक मात्र निस्वार्थ मीत।
दुख दैन्य अश्रु दारिद्र्य धार कर गए मुझे ही मनो-नीत
तूफान और इस आंधी में सुनवाने रज का जीव गीत ।
प्रशंसा. यह पंक्तियां साहित्य वैभव इस पाठ्य पुस्तक के तुम आओ मन के मुग्ध मीत इस कविता से ली गई है। इस कविता के कवि डॉक्टर सरगु कृष्णमूर्ति है।
संदर्भ. कभी कहते कि इस दुनिया में सभी लोग व्यापार देखते हैं। सभी लोग स्वार्थी है। तुम एक ही मित्र हो जो निस्वार्थ हो।
स्पष्टीकरण. कभी कहते हैं इस दुनिया में सभी स्वार्थी वृत्ति के लोग हैं सभी अपने-अपने स्वार्थ में मग्न है। मैं इन्हीं लोगों से घिरा हुआ हूं। मेरे आस-पास अंधकार है। मुझे यहां से बाहर निकलो। मुझे इसे मुक्त करो। तुम अपने मधुर गीत मुझे सुनाओ। इन सारे पापों से मुझे मुक्ति दे दो। तुम ही मेरे सच्चे मित्र हो तुम ही मेरे मधुर मीत हो।