On this page we have given an article on Debate in Hindi for Students. The name of the topic is क्या सरकारी शिक्षण संस्थानों का निजीकरण कर देना चाहिए ?
Debate – क्या सरकारी शिक्षण संस्थानों का निजीकरण कर देना चाहिए ?
भारत में 1830 में अंग्रेजों ने आधुनिक शिक्षण प्रणाली की शुरुआत की। वहां पर अंग्रेजी इस भाषा को प्रधानता दी गई। उसके पहले भारत में गांव-गांव में कोई एक गुण होता था और वहां पर गांव के सारे बच्चे इकट्ठा मिलकर शिक्षा लेते थे। वह शिक्षा गांव के बच्चों को सिर्फ बुनियादी ज्ञान प्रदान करती थी। उच्च शिक्षा के लिए हमारे भारत में कोई भी शिक्षण संस्था नहीं थी। ऐसे गांव में भी सभी बच्चे शिक्षा लेने के लिए नहीं जाते थे। महिलाओ के लिए तो शिक्षा लेना मतलब कोई पाप करना ऐसा माना जाता था। जब अंग्रेजों ने इस भारत की स्थिति देखी तो उन्होंने जगह-जगह पर शिक्षण संस्थानों की निर्मित की। गांव के सारे बच्चों को शिक्षा लेने के लिए प्रोत्साहित किया। जो लोग आर्थिक रूप से सदन नहीं है इस वजह से वह शिक्षा नहीं ले सकते उनके लिए मुफ्त शिक्षा का नियम बनाया। इस वजह से सारे बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिल गया। यहां तक के महिलाओं को भी अधिकार मिल गया। इस वजह से लड़के और लड़कियां दोनों ही शिक्षित हो गई।
अंग्रेजों को यहां पर काम करने के लिए नौकरी करने के लिए कई लोगों की जरूरत थी। लेकिन यहां के लोगों ने आधुनिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। अंग्रेजी भाषाओं से तो उनका दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं था। उन्हें शिक्षा मिले और यहां पर नौकरियां करने के लिए अंग्रेजी सरकार को नौकरदार मिले इस वजह से में शिक्षण संस्थानों की स्थापना की गई थी। लेकिन यहां के लोग जब शिक्षित हुए तो उन्हें अपने अधिकारों के बारे में पता चला और उन्होंने अंग्रेजी सत्ता से अपनी स्वतंत्रता के लिए मांग करना शुरू कर दिया।
हमें स्वतंत्रता मिलने के बाद भी अंग्रेजी सरकार ने जो भी शिक्षण संस्थाएं बनाई थी या फिर उन्हें लोग जो शिक्षा लेने के लिए मापदंड बनाए थे वही आगे चलते रहे। इस वजह से कई बच्चों को फायदा हुआ। भारत में जो लड़के लड़कियां रहती है वह सारी शिक्षित हो गई। उसके बाद यहां की सरकार ने भी कई सारे ऐसे कानून बनाए जिनकी वजह से भारत के सभी बच्चे आज पाठशाला जा सकते हैं और शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
आज यही शिक्षण संस्थाओं का निजीकरण करने के लिए सरकार कह रही है। क्योंकि सरकार के पास शिक्षा सभी तक पहुंचाने के लिए आर्थिक संसाधन नहीं है। लेकिन सभी बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य है। इसलिए सरकार सारी शिक्षण संस्थाओं का निजीकरण कर रही है। सरकारी यह कह रही है कि ऐसा करने से हम और अच्छी शिक्षा बच्चों को दे सकते हैं शिक्षा में सुधार ला सकते हैं और इसकी गुणवत्ता भी बेहतर बना सकते हैं। जब निजीकरण किया जाएगा तो उसे संस्था के सारे अधिकार ऐसे व्यक्तियों के पास जाएंगे जो व्यक्ति उसे शिक्षण संस्था पर अपना अधिकार जमाएगा।
लेकिन अगर निजीकरण किया गया तो कई बच्चे शिक्षा नहीं ले पाएंगे। क्योंकि सारे परिवारों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह बड़े-बड़े संस्थानों में अपने बच्चों को पढ़ सके। क्योंकि जब नीचे कारण होता है तो बच्चों को मुक्त शिक्षा नहीं दी जाएगी। और खाद की शिक्षण संस्थानों के जो फीस होती है वह बहुत बड़ी होती है और सामान्य लोगों को यह फीस देना बहुत मुश्किल होता है। शिक्षा से सभी बच्चों का कल्याण हो जाता है। यह संस्थाएं हर एक बच्चे के लिए अपनी संस्था के द्वारा नहीं खोल सकती। जब नीचे कारण हो जाएगा तो इसलिए व्यवसाय कारण ज्यादा हो जाएगा। सिर्फ पैसे लेन-देन का कारोबार हो जाएगा। उसे शिक्षा में भी कोई गुणवत्ता नहीं रहेगी। शहर जिनके पास पैसे है या धनवान लोग जो है वह अपने बच्चों को पढ़ पाएंगे। बाकी सारे परिवारों की तो लूट हो जाएगी।
इसी वजह से शिक्षा यह जो विभाग है वह सरकार द्वारा ही चलना चाहिए। निजीकरण में शिक्षा इस विभाग में सिर्फ लूट हो जाएगी। इसी वजह से शिक्षा यह जो विभाग है वह पूर्ण तरह से सरकार द्वारा ही संचालित होना चाहिए। सरकारी स्कूल में बच्चों की वृद्धि कैसे हो सकती है इसके तरफ सरकार को ध्यान देना चाहिए। वहां के जो शिक्षक होते हैं उन्हें पढ़ने के सिवाय भी बहुत सारे काम दिए जाते हैं इस वजह से वह बच्चों को अच्छी तरह से नहीं पढ़ पाते। अगर जो पढ़ाई के सिवाय काम होते हैं वह और लोगों को दिए जाए तो बेरोजगार लोगों को भी नौकरियां मिल जाएगी। इस वजह से भारत के बेरोजगारी भी कम हो जाएगी। वह शिक्षक जो है वह बच्चों को अच्छी तरह से पढ़ पाएंगे।
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