अपने जीवन में हर एक व्यक्ति को परोपकारी बनना जरूरी है। परोपकार एक ऐसा रूप है, जिसके फल हमारे जीवन में मिठास भर देते हैं।परोपकार मानव का धर्म है यह किसी को सीखने की जरूरत नहीं होती, दिन-ब-दिन यह हमारे अंदर खुद ब खुद बने बढ़ती जाती है। परोपकार एक ऐसी भावना है। जो कोई सीख नहीं सकता है। हमारे जीवन में आने वाले अनुभव समय के साथ हमें सिखा देते हैं।
परोपकार ही जीवन है पर लघु और दीर्घ निबंध (Short and Long Essay on Paropkar hi Jeevan hai in Paropkar hi Jeevan hai par Nibandh Hindi mein)
परोपकार पर और उपकार इन दो शब्दों से परोपकार शब्द बनता है। दूसरों के लिए किया गया काम उसके लिए उपकार का रूप होता है। जो हम निस्वार्थ से करते हैं। उसे उपकार कहते हैं। परोपकार मानव जाति के लिए सबसे बड़ा धर्म कहलाता है। हम किसी व्यक्ति को मदद करते हैं या किसी की अच्छे मन से सेवा करते हैं। उसे परोपकार कह सकते हैं। हमारे समाज में परोपकार से अच्छा कोई भी धर्म नहीं माना जाता है।
मानव जीवन में परोपकार बहुत महत्वपूर्ण है। पर उपकार हमारे प्रकृति का ही एक हिस्सा है। जो हमारे भीतर कण-कण में समाया तु है।परोपकार जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाते हैं। नदी कभी अपना अपना पानी नहीं पीती है। सूर्य हमें उजाला देकर जाता है। इसी तरह प्रकृति अपना सर्वस्व हमको देखकर हमसे बदले में कुछ भी पानी की कोई भी अपेक्षा नहीं करती है। किसी की भी व्यक्ति की पहचान उसके किए गए परोपकार से की जाती है। जो मनुष्य परोपकार करने के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है, वह एक परोपकारी मानव बनकर रह जाता है।
अगर हम समाझ में दूसरों की सहायता करने की भावना जितना अधिक कर सकेंगे,उनके लिए हमारा समाज सुखी, समृद्ध ,समाधान कारक बनेगा। परोपकार की भावना मनुष्य का एक स्वाभाविक गुण होता है। दूसरों का अच्छा करना दूसरों की सहायता करना मदद करना ही परोपकार करना होता है जो व्यक्ति दूसरों के लिए अपना सर्वस्व कर बलिदान देता है। उसे हम परोपकारी कहते हैं।
परोपकारी व्यक्ति में दया करूणा होती है।जिसे पिघलने से वह व्यक्ति दूसरों की मदद करता है। जिसे उसके मन को शांति और समाधान होता है। परोपकार के जैसा कोई पुण्य नहीं है।हमारे संस्कृत में जो व्यक्ति खुद दुखी होकर दूसरों को सुखी करता है।वही परोपकारी कहलाता है। परोपकार मानव समाज का एक आधार है। हर व्यक्ति को परोपकारी होना चाहिए, कि दूसरों की मदद करनी चाहिए।यह हमारा मानवी हक है जिसे हमारा समाज सुख समृद्ध हो। हमें खुद परोपकारी बनाकर दूसरों को भी परोपकार के लिए उत्साहित करना चाहिए।