तराइन का दूसरा युद्ध – 1192 | Second Battle of Tarain – 1192 in Hindi | Hindi Essay | Second Battle of Tarain Essay in Hindi.
तराइन का दूसरा युद्ध वर्ष 1192 में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच हुआ था। यह युद्ध तराइन नामक जगह पर हुआ था जो आज के समय के हरियाणा राज्य की तराइन क्षेत्र के निकट धुरीदो और चाहमानो के बीच लड़ा गया था। तराइन का दूसरा युद्ध भारतीय युद्ध में काफी महत्व रखता है। पृथ्वीराज चौहान भारत के राजपूत घरों के वंशज थे। वे दिल्ली के शासक थे जब उनके और मोहम्मद गौरी के बीच तराइन का दूसरा युद्ध हुआ था। तराइन की पहली लड़ाई पृथ्वीराज चौहान ने जीती थी, मोहम्मद गोरी एक तुर्की का शासक था। मोहम्मद गौरी की भारत की उपमहाद्वीप पर शासन करने की बहुत महत्वकांक्षी थी जिस वजह से उसने पृथ्वीराज चौहान से युद्ध किया था।
तराइन का दूसरा युद्ध बहुत ही महत्वपूर्ण था क्योंकि यह युद्ध हारने से पहली बार भारत में मुस्लिम शासक का शासन स्थापित हुआ था, इस युद्ध का उद्देश्य मोहम्मद गौरी का भारत जीतने का था। और पहले युद्ध में हुई हार का बदला लेना था। इस युद्ध की वजह ने भारत में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच नफरत को गहरा बना दिया था। तराइन के दूसरे युद्ध में कन्नौज के जयचंद्र ने पृथ्वीराज चौहान की पीठ में छुरा खोपा था जिस वजह से पृथ्वीराज चौहान पूरी तरह से घायल हो गए थे और मोहम्मद गौरी को एक आसान जीत मिलने में मदद हो गई थी। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की सेना में मोहम्मद गोरी के 120000 सैनिकों के खिलाफ 2000 से अधिक हाथी भी हाथी और 300 हजार सेना के जवान शामिल थे। पृथ्वीराज चौहान को इस युद्ध में बहुत कम सेना के साथ लड़ना पड़ा। मोहम्मद गौरी के सैनिकों ने पृथ्वीराज चौहान की सैनिकों पर आश्चर्यजनक हमला किया और इस अचानक हुए हमले से पृथ्वीराज चौहान की सेना का काफी भारी मात्रा में नुकसान हुआ। यह नुकसान ना सिर्फ अनैतिक था बल्कि अमानवीय था।
इस युद्ध में मोहम्मद गोरी की जीत हुई और पृथ्वीराज चौहान की हार हुई थी। यह युद्ध हारने का मुख्य कारण यह था कि उस समय भारत में हिंदू राज्यों के बीच एकता की कमी थी। और इस कमी का फायदा बाहर से आए हुए विदेशियों ने उठाया था।
For more updates follow our net explanations homepage